11 मार्च 1972 को जन्म। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्विविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में सहायक आचार्य रहे। अर्थशास्त्र से संबंधित विषयों पर आधारित आलेख विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित। पिछले दिनों कोरोना से संक्रमित होकर मृत्यु। 

आधी रात जब जाग जाता हूँ
तो जाग जाती हैं,
बहुत सारी चिंताएं
जैसे सुशासन की घोषणा पर
जागता है भय
वे घेरती हैं
शक्ल बदल बदलकर
कभी वे पांव पसारती हैं
चादर के पार
तो कभी-
एक फांसी का फंदा कौंधता है
और झूल जाता है एक गंवई किसान
चीत्कार करते हैं खग मृग
और ढह जाता है
एक भरा पूरा जंगल
कहीं कोई अर्जी लिए दाखिल होता है
और गर्दन उतार लेती है
आंखों पर पट्टी बांधे एक स्त्री
दुःशासन के स्पर्श को पहचानती एक स्त्री
छठी इंद्रिय खो बैठती है,
और-
तितलियों को कैद कर उनके रंग उतार लिए जाते हैं

आधी रात जब जाग जाता हूँ
तो कोई बेसुध-सा सांकल खटखटाता है
खोलने पर अपने को ही भागता हुआ पाता हूँ
हाथ पैर की बेड़ियों को घसीटता हुआ
इन दिनों निगाहें हिकारत से देखती हैं बुद्धू बक्से को
एक शोर
एक झगड़ा
कुछ घोंघे, केकड़ेऔर केंचुओं से
भर जाता है मेरा घर
एक रोता हुआ आदमी समेटता रहता है
बारिश में भीगता हुआ
और सिसकियां बिन बोले चीखती रहती हैं

आधी रात जब जाग जाता हूँ
तो खुल जाती हैं बहुत सारी खिड़कियां
कोई हौले से कंधे पर रखता है हाथ
ढाढ़स बंधाता हुआ
हत्या अब अपराध नहीं रहा
बशर्ते वह तुम्हारे गुट में न घटित हो

आधी रात जब जाग जाता हूँ
तो चौंक जाता हूँ
दुआओं की हिचकियों से
वे रात भर सुबकती रही हैं
सींखचों के पीछे
उन पर लोगों को बरगलाने का इलजाम है
हाँ, बिलकुल ये आधी रात का ही पहर है
जब देखता हूँ सितारे रो रहे हैं
अबोध बच्चों की नींद पर
वे तिरंगे से निकल कर
अनंत यात्रा पर चले गए हैं
और-
उनके पीछे छूट गए हैं यातना के टापू
जिन पर इकट्ठी हो रही हैं चींटियां
वे धीरे-धीरे दाखिल हो रही हैं
किले की नींव में, उसे ध्वस्त करने।

संपर्क: एच-12, हीरापुरीकालोनी,  निकट – बसस्टैंड, विश्वविद्यालयकैंपस,  गोरखपुर (उत्तरप्रदेश)