जिला साक्षरता समिति दुमका में जिला कार्यक्रम प्रबंधक। दो कविता संग्रह‘कई–कई बार होता है प्रेम’और ‘असहमति में उठे हाथ’।
कठपुतलियां
कठपुतलियां नाच रही हैं
सदियों से
सदियों से कुछ अदृश्य हाथ
नचा रहे हैं उन्हें
अंगुलियों के इशारे पर
कठपुतलियां थक चुकी हैं
सदियों से नाचते-नाचते
पर अफसोस थक नहीं रहे
उन्हें अंगुलियों पर नचाने वाले अदृश्य हाथ
सदियों से अंगुलियों पर नाचती कठपुतलियां
अब ठान चुकी हैं
कर चुकी हैं घोषणा
कि बहुत हो चुका
अब नहीं नाचेंगी वे
किसी की अंगुलियों के इशारे पर
ठान चुकी हैं कठपुतलियां
कि अब लिखेंगी वे अपनी आत्मकथा
और बताएंगी दुनिया को
सदियों से अंगुलियों पर नचा रहे
उन अदृश्य हाथों की असलियत
जब से कठपुतलियों ने की है घोषणा
आत्मकथा लिखने की
सुना है उनको नचाने वाले कई अदृश्य हाथ
समेटने लगे हैं अंगुलियों में बंधे अपने-अपने धागे।
जब तक लौटोगी तुम
जब तक लौटोगी तुम
वसंत जा चुका होगा जीवन से
गाते-गाते हो चुकी होगी शाम
रेत पर लिखा तुम्हारा नाम
मिटा चुकी होगी बारिश
टूट चुके होंगे
गिटार के तार
भूल चुकी होगी तुम भी
गीत के बोल
आखिरी ट्रेन भी
जा चुकी होगी
तुम्हारे शहर की
सुनसान सड़कों के किनारे खड़े
सारे के सारे लैंपपोस्ट
बुझ चुके होंगे रातभर जलकर
तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा करते-करते
मेरी जेब के पर्स में लगी
तुम्हारी तस्वीर का रंग भी
हो चुका होगा फीका और उदास
सारे के सारे प्रेम-पत्र
पड़ चुके होंगे पीले
कलम की स्याही सूख चुकी होगी
खत्म हो चुके होंगे डायरी के सब पन्ने
आत्मकथा लिखते-लिखते ।
संपर्क: जनमत शोध संस्थान, पुराना दुमका केवटपाड़ा, दुमका–814101 (झारखंड)मो. 9431339804