युवा कवि। एक पुस्तक कुंवर नारायण का कविता लोक

आउट स्विंग

वर्तमान का मकान
अतीत की ईंटों से बना होता है

अतीत की बेचैनियां
वर्तमान की पिच पर
दूब की तरह
उगा करती हैं

समय का रोलर
बार-बार चलाया जाता है
पिच पर

और
जिंदगी है कि
तेजी से आती हुई
आउटस्विंग गेंद की तरह
अक्सर चकमा दे जाती है

कश्मीर इन दिनों

फ़िज़ा से पूरी तरह गायब हो गया है शोर
चीखें अब नहीं सुनाई पड़तीं
जवां-बूढ़े सपनों में अक्सर
बूटों की कदम ताल गूंजती है

बच्चे
वेंटिलेटर से छनकर आती धूप को
दूसरी दीवार पर
रोशनी के
धब्बों की तरह
सरकता हुआ देखते हैं
पूरे दिन
दिन का बस
यही मतलब रह गया है इन दिनों
रातों का सिलसिला
अब दिन में भी जारी है

अब बूढ़े-बुज़ुर्गों के किस्सों में ही
बचा होगा कहीं
नीले आसमान पर
सफेद परिंदे की उड़ान जैसा कश्मीर

कुछ दृश्य

I
पतझड़ के बाद
चौक के बड़े-से पेड़ की नंगी टहनियों पर
नन्ही हरी पत्तियां आई हैं
वहां से गुजरते हुए
जब भी देखता हूँ ऊपर की ओर
लगता है
आसमान के पन्ने पर
कविता छपी हो जैसे
II
तारे उग आए हैं
पर चांद ने आज स्थगित कर रखा है
अपना उगना

कभी-कभी सोचता हूँ
क्या करता होगा चांद
फुर्सत के उन न उगने के दिनों में!

क्या पता
उसके पास कोई किताब हो
जिसे पढ़ते-पढ़ते सो गया हो
उसी पर सिर रखकर
और भूल गया हो उगना!
III
तस्वीर में
जो सुंदर कली है खिलने को आतुर
तस्वीर के बाहर जाने
उसका क्या हुआ होगा!
वह खिलकर मुरझाई होगी?
या खिलने से पहले ही तोड़ ली गई होगी?
यह सब फोटोग्राफर को नहीं पता

जीवन
दरअसल तस्वीर के अंदर नहीं
तस्वीर के बाहर
घटने वाली परिघटना होती है

गलत मत समझना

सभी बोलना चाहते हैं
सुनना कोई नहीं चाहता
तुम अगर कम बोलते हो
तो लाज़िम है कि गलत समझे जाओगे

कुछ कहना चाहो भी
तो सुननेवाला
तुम्हारे कहने में से कुछ शब्दों, कुछ वाक्यों के बल पर
तुरंत निष्कर्ष निकाल लेगा
और तुम्हें कहने से रोककर अपनी बात कहेगा
जो उसे नई और आगे की बात लगेगी

तुम क्यों नहीं बोलते
या कम बोलते हो
तुम जानो
हो सकता है
तुम्हें कहनेवाले को रोककर बोलना पसंद न हो
हो सकता है
तुम सुननेवाले के कहने को सुनने में लग जाते हो
हो सकता है
तुम लोकतांत्रिक होने की कोशिश करते हो

तुम्हारे कम बोलने के
इन सभी संभावित कारणों के बावजूद
अगर ये समझ लिया जाए
कि तुम्हें बोलना नहीं आता, या तुम्हें कुछ नहीं आता
तो गलत मत समझना!

दो बिंदुओं के बीच का असीम

मैं क्या हूँ
और आप मुझे कैसे जानते हैं
ये दो बिंदु होते हैं किसी को जानने के

कई बार
इन दो बिंदुओं के बीच की सरल रेखा में
डूबता-उतराता होता है आदमी

कई बार
इन दो बिंदुओं के बीच की
सरल रेखा को लंबवत काटता हुआ
सरल रेखा के बाहर भी होता है
उसी सरल रेखा पर बार-बार लौटता हुआ

इन दो बिंदुओं के बीच की
किसी वक्र रेखा की तरह भी हो सकता है वह
एक ऐसा वृत्त रचता हुआ
जिसके बीच में कहीं दोनों बिंदुओं का अस्तित्व हो
बिलकुल पास-पास

मैं क्या हूँ
और आप मुझे कैसे जानते हैं
ये दो बिंदु होते हैं किसी को जानने के
और इन दोनों बिंदुओं के बीच
एक असीम संसार होता है

विचारों की बेतरतीब भटकन

I
प्रेम का स्त्री दृष्टिकोण
पुरुष-चालाकियों की शिनाख़्त का
कारगर औजार है
II
जिसपर स्नेह होता है
उसके हित में आए फैसले को न्याय समझना
मानवीय फ़ितरत है
III
जिन लोगों में जरूरत के मुताबिक
अपनी भूमिकाएं बदलने का हुनर होता है
वे जीवन में बहुत सफल होते हैं
IV
सामने वाले की
न्यूनतम नैतिकता के बजाय
अपनी छोटी-छोटी चालाकियों पर
भरोसा करने का युग है यह
V
दुनिया एक ऐसा रंगमंच है
जहां किरदार काल्पनिक हैं
और घटनाएं सच्ची
यहां शालीनता और ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ती है
तथा कष्ट अतिरिक्त और सामूहिक होकर
हँसी का सबब बन जाता है।

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गांव व पोस्ट- चांदुआ, जोड़ा पुकुर के नजदीक, कांचरापाड़ा, जिला- उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल- 743145