युवा कवि और शोधार्थी।
जो मनुष्य नहीं होते
वे नदियों का गला रेत देते हैं
पहाड़ों पर
पठारों पर
अपने खूनी पंजों के निशान छोड़ जाते हैं
उनको उनके रंग से पहचाना जा सकता है
वे अपनी शर्तों पर अडिग होते हैं
वे हत्या को शुभ मुहूर्त की तरह मनाते हैं
वे मनुष्यता का ख़ून कर
चुपचाप लौट जाते हैं
शहर के जंगल में
जो मनुष्य नहीं होते हैं
वे आदमी की शक्ल से नफ़रत करते हैं
वे दंगे में पाए जाते हैं
लूट में शामिल होते हैं
वे वर्दी में हो सकते हैं
और नहीं भी
जो मनुष्य नहीं होते
वे इतिहास की लाशों पर लेटकर
वर्तमान में जीवित लोगों की
हत्याओं में शामिल होते हैं
वे हर जगह होते हैं
वे गिरजाघरों में होते हैं
मस्जिदों में होते हैं
मंदिरों में होते हैं
वे हर एक जगह होते हैं।
संपर्क: शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, लोहित छात्रावास
मो. 7289864169
कभी यह लिखना भूल गया है जो मनुष्य नहीं होते वे सत्ता के शीर्ष पर होते हैं वे दिखते तो मनुष्य जैसे हैं परंतु मनुष्य नहीं होते।