युवा कवयित्री।  दो कविता संग्रह शब्दों की दुनिया’, ‘कंचनजंघा समयसहित आलोचना की कुछ पुस्तकें प्रकाशित। उत्तर बंग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर। 

सीख

जवान होती मेरी बेटियो सुनो!
ब्याह अगर करना तो खुद वर चुनना
याद रखना पिता एक परंपरा है
जो साथी नहीं परिवार चुनता है
बेटी के लिए
परिवार में
ससुर होता है देवर या भसुर होता है
तुम्हारे रंग-रूप और कद-काठी पर टीप देती
तुम्हारे आंसुओं से अपनी कुंठा को तृप्त करती
पल-पल तुम्हारे हर काम पर नजर रखती
एक ननद जरूर होती है
बहू के स्वाभिमान पर गोले दागती
डेग –डेग पर कुछ न कुछ समझाती
सास होती है बहुत खास

समझ लो एक बवंडर घूमता रहता है हमेशा
डाह और वर्चस्व का

पति कहीं साथी या प्रेमी न बन जाए पत्नी का
पूरा इंतजाम होता है इसका
किसी की डाह किसी की कुंठा का शिकार होकर
छलनी हो जाती है तुम्हारी निष्कलुष आत्मा
वे खूब करते हैं घात जब तक तुम ढल नहीं जाती
उस सांचे में हृदय पर खरोंचें लेकर
उस भरे-पूरे परिवार में जब तक खत्म नहीं हो जाती
तुम्हारी करुणा और कोमलता
और अपूर्ण रह जाता है तुम्हारा मनुष्य बनना

मनुष्य बनने के लिए काफी नहीं है
अपने पैरों पर खड़ा होना
तुम्हारी कोई कद्र नहीं होती
जिस जाति और धर्म के अनुशासन में
समर्पित हो कर रह जाती हो तुम

सुनो बेटियो!
बहुत जरूरी है जाति की जंजीर तोड़ना
तुम समर्थ हो निकल जाओ
जितनी जल्दी हो सके।

नजरिया

पुरुष कविता लिखे अगर
स्त्रियों के सवाल पर
कितना संवेदनशील कहलाता है वह

यदि स्त्री लिखे तो वह होता है
व्यक्तिगत कथन
फिर भी लिखती ही जाती हैं स्त्रियां
पुरुष मानता है जिसे व्यक्तिगत
बना रहता है वह सामाजिक सबकी दृष्टि में

लिखना सामाजिक होना है
जब लिखने पर तुलती हैं
मन का सबकुछ कह देती हैं स्त्रियां
कोई खींचे दीवार
खोदे खाई
फिर भी लिखती हैं स्त्रियां
क्योंकि लिखने में मुक्ति है कहने में मुक्ति है
मुक्त मन लेकर जीती हैं स्त्रियां।

देवता बूढ़े नहीं होते

देवताओं की शिशु तस्वीर कितनी मोहक होती है
युवा छवि के भी क्या कहने
उनकी पवित्र गरिमा बस जाती है हृदय में
हमने नहीं बनाई एक भी किसी देवता की बूढ़ी तस्वीर
हम रखते हैं अपने देवताओं को जवान
रूप और आभा से जाज्वल्यमान
अस्त्र –शस्त्र युक्त वरमुद्राधारी
सुखकारी और दुखहारी
क्योंकि बचपन बहता है सचपन लेकर
यौवन होता है जीवन का सौंदर्य
पर बुढ़ापा नाम है निष्क्रियता का

हमेशा सहारा ढूंढता हुआ एक निर्बल तन
परिस्थितियों की आंच में सिंका भुना हुआ मन
मस्तिष्क में घुमड़ते रहते हैं विचार
सोते-जागते अनवरत
इसलिए हम जिन्हें पूजते हैं
वे देवता कभी बूढ़े नहीं होते।

संपर्क: हिंदी विभाग, उत्तर बंग विश्वविद्यालय, राजा राममोहनपुर, सिलीगुड़ी, जिला -दार्जिलिंग -734013   प. बंगाल।  मो. 9434462850 ईमेल — manisha _nbu@yahoo.com