चर्चित कवि। तमाम गुमी हुई चीज़ें, घर के भीतर घर, ऐसे दिन का इंतज़ार, और आशाघोष चार कविता संग्रह प्रकाशित।
सच बोला तो
पहली बार मैं
सच बोला था
लोग खुश हुए थे
दूसरी बार बोला तो
कानाफूसी हुई
तीसरी बार बोला
तो मुझे समझाईश दी गई
कम बोलने की
चौथी बार बोला
तो सब खामोश हो गए
पांचवी बार बोला
तो धमकी दी गई
छठवीं बार बोला तो
मुझे अलग कर दिया गया
सातवीं बार बोला
तो लोगों ने आंखें तरेरीं
आठवीं बार बोला तो
मुझे अपने हाल पर छोड़ दिया गया।
बाहर आओ
रंगमंच से जरा तो बाहर आओ
स्वप्नलोक और रोज़मर्रा से
जरा तो खिसको इधर-उधर
अपने ही दोस्तों और प्रशंसकों
के घेरे से बाहर रखो पांव
सुनो कान लगाकर
कइयों ने तुमसे निराशा पाई है नाहक़
वे तुम्हें धिक्कार रहे हैं
और तुम संवेदनशीलता के धंधे से
बटोर रहे हो इतना यश, धन, मौके!