युवा कवि और समीक्षक।दिव्य कैदखाने में’ (कविता संग्रह), ‘मल्लू मठफोड़वा’  (उपन्यास),  ‘रचना और रचनाकार’ (आलोचना) प्रकाशित। फिलहाल अध्यापन।

जब कभी
होने लगे
निराशा से मन बोझिल
हताशा की धूप करने लगे तुम्हें क्षीण
बैठना अपने पिता के पास
और बतियाना उनसे
जब कभी अनजाने भय के साए में
दबते नजर आओ
मां की सहायता करना
रसोईघर में जाकर
जब कभी दिखे पराजय का मुख
मिल आना अपने भाइयों से
और जब कभी छला हुआ महसूस करो
अपनों से
चले जाना बहनों के यहां
कभी अकेले खेतों में घूम आना
और चुराकर खा लेना चने, मटर
बालियों से
सुन लेना किसी की डांट
और दौड़ लेना बेतहाशा
छूना आसमान की बुलंदियों को
पर मिट्टी की पकड़ मत खोना
सूरज से आंख लड़ाना जरूर
पर पीड़ितों को मत सताना
तपती धूप की तपिश और
बारिश के पानी को जीवित रखना अपने भीतर
हँस लेना किसी बहाने
बिना मौके के
बड़ी तीखी होती है मौसम की अंगड़ाई
और जिंदगी की करवट
शोर और कपट की आंधियों के बीच
जब तुम्हें होगी जरूरत
अपने सपनों की लौ को बचाने की
निःसंदेह ये सब
सँभाल लेंगे तुम्हें।

संपर्क : सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, बी.एस.कॉलेज़, दानापुर, पटना (पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय), पटना-800012 मो.749390 4520