सुपरिचित कवि। अद्यतन कविता संग्रह ‘ईश्वर एक अनाड़ी फोटोग्राफर है’।
हर दिन लेकर चलना होता है
अपनी पहचान अपनी जेब में
मैं घर भूल कर नहीं आ सकता अपनी पहचान
भले ही अपने दिल को कहीं भूलकर आ जाऊं
मैं रखता हूं रोज उसेअपनी जेब में
घर से निकलने से पहले
जैसेअपने दिल को रख रहा होऊं
मैं पहचान नहीं पाता अपनी ही पहचान को
इसमें किस आदमी की तस्वीर है
यह कब खींची गई थी
और इसमें यह कौन आदमी बेवजह मुस्करा रहा है?
इस मई की दोपहर जब सारे फूल मुरझा गए हैं
इसमें छपी मेरी तस्वीर मुझे कई बार
अपने पूर्वजों की लगती है
जो चाकरी करने से पहले ही मर गए
जो मर जाते
अगर उन्हें इस बदनाम इमारत में आने से पहले
रोज अपनी पहचान बतानी पड़ती
दफ्तर में घुसते ही मुझसे सवाल करती है
अपनी मांग में बेवजह ढेर सारा सिंदूर लगाए लड़की
कहां है आईकार्ड? अपनी पहचान दिखाओ
मेरी पहचान मैं स्वयं हूं
मेरी पहचान मेरी सूरत है
मेरी पहचान इस देश के भले मानुष की है
मेरी पहचान उन करोड़ों देशभक्तों की पहचान है
जिनके खून से सींची गई है इस इमारत की नींव
रोज-रोज देखती हो मुझको
फिर भी पहचानती नहीं
रोज-रोज क्या बदल जाती है मेरी सूरत
मेरी आंखों का बालों का मूंछों का भावों का रंग?
क्या रोज-रोज बदल जाता है
मेरी चमड़ी का रंग
क्या मेरे चेहरे पर रोज बन जाते हैं
उम्र के खुरदरे घाव
क्या तारीख बदलने से तारीख बदल जाती है?
इस दफ्तर में घुसते हैं रोज ढेर सारे गवैये
तबलची, मजमेबाज, पहलवान
हाजिर जवाब राजनेता
भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे हुए नौकरशाह
लक्क साड़ी में महकती हुई कवयित्रियां
अपने चमचों और कुत्तों के साथ
काली चमचमाती गाड़ियों में
यहां घुस सकते हैं लावारिस कुत्ते
चमगादड़, बिल्लियां, कबूतर, ढेर सारे चूहे
और काल के प्रेत बगैर किसी पहचानपत्र के
एक उल्लू आकर रोज उस कोने में बैठता है
अपने समय पर बिसूरता हुआ
एक चिड़िया आती हैऔर
महानिदेशक के चमचमाते सूट पर बीटकर जाती है
मैं नहीं घुस सकता इसके बगैर
उस दिन खत्म हो जाती है मेरी पहचान
हर चौकीदार को
उस दिन मेरी सूरत
किसी आतंकवादी की लगने लगती है
संसद मार्ग थाने में रिपोर्ट दिखानी पड़ती है
कि खो गई है मेरी पहचान
वापस दिलाओ मुझे मेरी पहचान
वह पिछले साठ साल से गुम है
मेरी पहचान वापस दिलाओ उस आदमी से
जो वहां उस इमारत में बैठा
अमेरिका से हाथ मिला रहा है
उसके बगैर मैं जा सकता हूं कहीं भी
यमराज के पास कब्रिस्तान में या निगम बोधघाट
डीटीसी की बस में बैठकर
जा सकता हूं बादलों के पार
एक लड़की के सपनों के भीतर
जहां आवागमन का कोई साधन नहीं जाता।
पर नहीं घुस सकता अपने दफ्तर में
जहां मेरी नेमप्लेट लगी है
जहां मेरी मेज पर रह गया है एक-अधूरा नोट
जिसे मुझे हर हाल में आज पूरा करना है
और तत्काल लिखकर आगे बढ़ाना है
मुझे जाने दो वहां मेरा इंतजार हो रहा है
एक बूढ़ा आज पंद्रहवीं बार आया होगा
अपनी पेंशन के कागज के लिए
एक विधवा आई होगी मुझसे प्रमाणपत्र लेने
कि उसका आदमी मर गया है
वहां एक दराज में रखी है मेरी जान
वहां एक टेलीफोन
लगातार घनघना रहा है मेरे लिए
वह मंगल ग्रह से आया हो सकता है
वहां एक घड़ी मेरी याद में
टिकटिक कर रही है
वहां एक कैलेंडर
मेरी याद में फड़फड़ा रहा है
वहां की दीवारें मुझे पहचानती हैं
वहां के पर्दे मुझे जानते हैं
वहां के कंप्यूटर जानते हैं मेरे उंगलियों के निशान
मुझे जाने दो ओ पगली लड़की!
मैं कोई आतंकवादी नहीं
मेरे पास है हथियार के नाम पर
केवल एक कलम और कुछ सिक्के
क्या हुआ
जो मेरे पास कागज का एक टुकड़ा नहीं!
हर दिन लेकर चलना होता है
अपनी पहचान अपनी जेब में
मैं घर भूल कर नहीं आ सकता अपनी पहचान
भले ही अपने दिल को कहीं भूलकर आ जाऊं
संपर्क: जी-402, सिविटेक संपृत्ति, सेक्टर 77, नोएडा-201301 मो.9953320721