नौशीन परवीन, रायपुर:‘वागर्थ’ के जनवरी अंक से लेकर मैं अब तक ‘वागर्थ’ को गंभीरता से पढ़ती आ रही हूँ।मुझे लगता है कि हिंदी में यह अपनी तरह की एक अलग पत्रिका है जो सुनियोजित रूप से संपादित और प्रकाशित होती है।इसकी विविध सामग्री पठनीय और संग्रहणीय है।पूरी ‘वागर्थ’ टीम इसके लिए बधाई की पात्र है।

मार्च अंक में अंजू शर्मा की कहानी ‘उसके हिस्से का आसमान’ पढ़ी।उसको पढ़कर लगा कि सच है सबके अपने हिस्से का अलग-अलग आसमान होता है जिसमें हमें पंख लगा कर उड़ना होता है, नई नई दिशा की खोज करनी पड़ती है।शोभा नारायण की कहानी ‘पतझड़ के रंग’ एक सुंदर कहानी है।मीरा जैन की लघुकथा ‘प्लास्टर’ बार-बार अपनी ओर आकर्षित करती रही।

उषा उपाध्याय की कविता में किताबें बातें करती हैं।पूनम सोनछात्रा की कविता में स्त्रियां बचा लेती हैं।श्रद्धा सुनील की कविता में छली गई स्त्रियों का अपना अलग ही अंदाज है।

‘स्त्री की कहानियां : जीवन संघर्ष और स्वप्न’ के अंतर्गत  सुधा अरोड़ा, रोहिणी अग्रवाल, वंदना राग, ज्योति चावला, हुस्न तब्बुसुम निहाँ और ममता सिंह को पढ़ना एक विराट अनुभव संसार से गुजरना है।ये सभी कथा लेखिकाएं हमारे समय की विशिष्ट कथाकार हैं।बहरहाल ‘वागर्थ’ जैसी सुंदर और विचारोत्तेजक पत्रिका के लिए बहुत बहुत बधाई।

हंसा दीप, टोरेंटो: मैं वागर्थ टीम की हार्दिक आभारी हूँ।कहानी के कथ्य के अनुकूल चित्रों ने कहानी ‘पुराना चावल’ को सजीव बना दिया।सशक्त सामग्री के साथ ही बेहतरीन प्रस्तुति से वागर्थ के अंक शानदार कलेवर के साथ पाठक को अत्यधिक प्रभावित करते हैं।हार्दिक बधाई स्वीकारें।

धर्मपाल महेंद्र जैन:‘वागर्थ’ के मार्च 2022 अंक में पश्चिमी देशों में एकाकी जीवन जी रहे बुजुर्ग लोगों के आम जीवन और दिनचर्या को रेखांकित करती हंसा दीप की सशक्त कहानी है ‘पुराना चावल’।वेब पृष्ठ पर मनमोहक प्रस्तुति के लिए वेबमास्टर को भी बधाइयां।

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पुस्तकालय गर्दिश में

मनोज कुमार, हावड़ा: देश में सैकड़ों पुस्तकालय इस समय बुरी हालत में हैं।हावड़ा में एक दुर्लभ पुस्तकों और पत्रिकाओं से भरा एक पुस्तकालय हैहनुमान पुस्तकालय।काश, इसके संरक्षण की तरफ लोगों का ध्यान जाता!