युवा कवि। कविता संग्रह एक तीली बची रहेगी’, ‘बीज की चुप्पी

1-बेदखल होना पीड़ादायक है

जो हमें जानते हैं
रिश्ते-नातेदार दोस्त हम-जात
बगलगीर खेत-पड़ोसी
सार्वजनिक नल पर मेल-मुलाकात टकरानेवाले
कपड़ों पर लोहा फिरानेवाला धोबी
फर्राश, रसोई गैस का हॉकर
अल्ल-सुबह सड़क बुहारनेवाली बाई
सब्जीवाला, दूधवाला, पोस्टमैंन
जुड़ सकते हैं इसमें कुछ और भी
उन्हीं के लिए जिंदा हैं हम
दो चार दिन न दिखें तो
वेे ही पूछेंगे कहां थे
अखबार दरवाजे पर ही पड़ा देख
समझ गया बाहर गए हैं
रसोई गैसवाला कहेगा
चार-छह दफे बजाई घंटी
पड़ोसी से पूछा, पता चला बाहर गए हैं
ये सभी ही आएंगे उसके लिए
करेंगे दो-चार अच्छी बातें
जो हमें नहीं पहचानते-जानते
उनके लिए तो दो-एक संख्या भर रहेंगे
इतने मरों में शामिल
गर दुर्घटना में जाते रहे तो
कई बार वह भी नहीं
मुआवजा राशि न देना पड़े
इसलिए जनगणना से बेदखल रहे
बेदखल होना
सदैव पीड़ादायक है
जीते जी भी और
मरने के बाद भी।

2-कैसे बच सकते हो

नाक की वजह से भी
परेशानी में पड़ सकते हैं
सांस लेने के अलावा
सूंधते हों कुछ और तो
आंख भी बन सकती है
परेशानी का सबब
जो दिखाया जा रहा है
उससे कुछ इतर देखते हों तो
मुंह के तो
मुंह बाए खड़ा है संकट
असहमति की फुसफुसाइट भी
गहरा सकती है संकट
फकत सुनना है कान को
परलोक की गाथाएं पुरातन किस्से
इहलोक के चीत्कार पर
कान धरा तो तुम जानो
तुम जीवित हो
इतना पर्याप्त है
तुम जीवित क्यों हो
यह जानने की कोशिश भी…
फिर कैसे बच सकते हो तुम?