वरिष्ठ कवि। अद्यतन कविता संग्रह बैंड का आखिरी वादक।

यह एक बूढ़ी काया का हाथ है
बूढ़ी काया से ज्यादा एक मनुष्य का हाथ
बरगद की शाखाओं के झुरमुट की तरह
इस हाथ पर पड़ी ये झुर्रियां दरअसल झुर्रियां नहीं
पीछे छूट गए एक युग का इतिहास है
इस इतिहास में छिपी है एक कूट-लिपि
जिसे पढ़ पाना
पुरातत्ववेत्ताओं के वश का काम नहीं
इसे पढ़ने के लिए तुम्हें
झुर्रियों के भीतर तनी
नीली नसों के संजाल में बहते
रक्त के साथ धड़कना होगा

जन्म से नहीं था यह हाथ
इसी तरह रूखा और झुर्रीदार
तब यह महज हाथ नहीं
कमल और गुलाब की
कोमल और कांतियुक्त पंखुरी था
वक्त के साथ धीरे-धीरे होता गया यह गुट्ठल
बदलता गया गुलाबी रंग कालिमा लिए भूरे रंग में
इस्पाती शिकंजे में बदलती गई
धीरे-धीरे इसकी जकड़
कभी फैला यह हाथ एक गिड़गिड़ाहट के साथ
देवताओं के आगे
तना कभी यह मुट्ठी बन कर
अहंकारियों और अत्याचारियों के खिलाफ
सहलाया इसने कभी
दुधमुंहे बच्चों के नाजुक हाथों को
वरदहस्त की तरह घूमा यह
न जाने कितने रेशम से बालों में
इन झुर्रियों में अनलिखी तारीखें अंकित हैं
उन तारीखों में घड़ी की सुइयों की मानिंद
एक समूचे युग की कथाएं दबी पड़ी हैं

भीतर से उमड़ती एक जरूरी इच्छा के तहत
मैं इस झुर्रियों से अटे हाथ के इतिहास का
सिर्फ उत्खनन ही नहीं
अपने रक्त की आखिरी बूंद तक में
इसकी धड़कन महसूस करना चाहता हूँ।

संपर्क : बी-702, आशादीप वेदांता सोसाइटी, के.एस. पैट्रोल पम्प के पास, अक्षय पात्र रोड, ग्राममुरलीपुरा,पो.दाँतली, वाया कानोता, जयपुर-302012  मो.8233809053