चर्चित युवा कवि। दो कविता संग्रह ‘तथापि जीवन’, ‘कदाचित अपूर्ण’।

गांव की तरफ भागते हुए

कितनी दूर है गांव
अपने गांव की दूरी दूसरों से पूछता हूँ
क्या मुझे भूख लगी है- दूसरों से पूछता हूँ
क्या मैं मर रहा हूँ-दूसरों से पूछूंगा
कितनी दूर है गांव
कहां से आ गए ऐसे कंटीले पेड़
इतने नुकीले पत्थर,इतने हिंस्र पशु
कितनी दूर है गांव?

गांव की तरफ जाना सुखद क्रिया होती थी
ट्रेन की अधपक्कू नींद बार-बार टूटती थी
हींग की महक से
ओस-भरे धान को छूकर आती हवा
मन के पानी का आयतन बढ़ा देती थी
अच्छा लगता था सूर्यास्त से थोड़ा पहले
स्कूल से घर लौट रहे बच्चों को देखकर
कहीं रामदाना खरीदता था
कहीं नींबू की चाय
छोटे-छोटे कदम से
पास आती थी छोटी-छोटी खुशियां
आंक लेता था गांव कितनी दूर है

कितनी दूर है गांव
अभी पत्तों का रंग नहीं दिखरहा
फूलों से गंध नहीं उठ रही
कितनी मौतें देखूंगा रास्ते में
खंड खंड होगी कितनी लालसाएं
कितनी दूर है गांव?

उपरांत

पूरी ईख चूस लेना
जूते की पालिश कर लेना
बच्चों को होमवर्क करा देना
ताश की बाजी खत्म कर लेना
फिर आना मेरी अंत्येष्टि में
मन हो तो
हर दोस्त मरने के बाद लाश ही तो है।

फिर

जीवन
बकरी के दूध-सा सरल
सीधा नीम के पेड़-सा
कुछ थपेड़े, फिर
एक सौ विषों का मिश्रण
नागफनी का पौधा।

उलटे

मैं सूअर की तरह मरा
इस लोकतंत्र में
कीचड़ में लथपथ
मेरे बच्चों को
कोई मुआवजा नहीं मिला
उलटे उन्हें यह सिद्ध करना पड़ रहा
कि पिता सूअर की तरह नहीं मरे।

प्रश्न

सड़क पर स्ट्रीटलाइट के नीचे
एक वृद्ध बार-बार पूछ रहा था
कौन जीता?
कौन जीता?

महंगी-महंगी गाड़ियों का हुजूम जा रहा था
ढोल पीटे जा रहे थे
शोर था जो कान को दुख दे रहा था
वृद्ध बार-बार पूछ रहा था
कौन जीता?
शायद कोई सुन नहीं रहा था
फिर भी वह पूछ रहा था

वह बार-बार अपनी चप्पल देख रहा था
बार-बार देख रहा था कुर्ते का बटन
वह अंधा नहीं था
वह बहरा नहीं था
सारी ज्ञानेंद्रियां सक्रिय थीं
और वह बार-बार पूछ रहा था
कौन जीता?
कौन जीता?

संपर्क: द्वारा-श्री सुरेश मिश्र, दीवानी तकिया,कटहलवाड़ी, दरभंगा, बिहार-846004/ मो.7654890592