


मैंने अखबारों में पढ़ा
फ्रीडम ट्रेन के बारे में।
मैंने रेडियो में सुना
फ्रीडम ट्रेन के बारे में।
प्रभु, मैं करता रहा हूँ इंतजार
फ्रीडम ट्रेन का!
केवल एक ही ट्रेन देखी है मैंने
डिक्सी के दक्षिण में
जिसमें अलग से है जिम क्रो1 डब्बा मेरे लिए
मुझे उम्मीद है कि
फ्रीडम ट्रेन में नहीं होगा जिम क्रो
न ही होगा प्रवेश के लिए कोई पिछला दरवाजा
न होगा लिखा ‘काले लोगों के लिए’ फ्रीडम ट्रेन में
न होगा लिखा ‘केवल गोरों के लिए’ फ्रीडम ट्रेन में।
पता लगाने जा रहा हूँ
फ्रीडम ट्रेन के बारे में।
कौन है इंजीनियर फ्रीडम ट्रेन में?
क्या कोयले-सा काला आदमी
चला सकता है फ्रीडम ट्रेन?
या मैं अभी भी कुली हूँ फ्रीडम ट्रेन में?
क्या बैलट बॉक्स होगा फ्रीडम ट्रेन में?
क्या काले लोग भी कर सकेंगे वोट फ्रीडम ट्रेन में?
जब यह रुकेगी मिसीसिपी में तो क्या यह रहेगा स्पष्ट
कि हर व्यक्ति को बैठने का होगा अधिकार
फ्रीडम ट्रेन में?
कोई मुझे बता दे
फ्रीडम ट्रेन के बारे में?
बर्मिंघम स्टेशन में लिखा है- गोरे और काले
गोरे चले दाएँ से, काले चले बाएँ से –
यहाँ तक कि दोनों के लिए बने हैं
अलग-अलग रास्ते
क्या यह होगा तरीका
प्रवेश करने का फ्रीडम ट्रेन में?
मैं जानना चाहता हूँ
फ्रीडम ट्रेन के बारे में!
यदि मेरे बच्चे मुझसे पूछें
‘डैडी कृपया यह समझाएँ
क्यों है जिम क्रो स्टेशन फ्रीडम ट्रेन के लिए?’
क्या बताऊँगा मैं अपने बच्चों को?
तुम बता दो मुझे –
क्योंकि आज़ादी नहीं है आज़ादी
यदि आदमी आज़ाद नहीं
लगता है वे समझाएँगे
फ्रीडम ट्रेन के बारे में।
जब अटलांटा में 83 वर्षीय मेरी काली दादी
फ्रीडम ट्रेन देखने लगेगी कतार में
तो क्या कोई गोरा चीखकर कहेगा, ‘वापस जाओ’
‘किसी नीग्रो का क्या काम यहाँ फ्रीडम ट्रैक में!’
महाशय,
काश यह फ्रीडम ट्रेन हो!
उसके पोते का नाम जिमी था
वह मरा एंज़ियो में
वह सच में मरा आज़ादी के लिए
यह नहीं था दिखावा।
इस फ्रीडम ट्रेन में जो आज़ादी वे पेश करेंगे
क्या वह सच में होगी या फिर होगा कोरा दिखावा?
जिमी जानना चाहता है
फ्रीडम ट्रेन के बारे में।
क्या ‘उसकी’ फ्रीडम ट्रेन
गोरों और कालों के लिए सूर्य की रोशनी में
चमचमाते हुए तेजी से चली आएगी ट्रैक में?
नहीं रुकेगी उन स्टेशनों पर
जहाँ लिखा होगा गोरा या काला
जो बस रुकेगी मैदानों के खुले प्रकाश में
रुकेगी गांवों की खुली हवा में
जहाँ कभी भी
कहीं भी नहीं होंगे जिम क्रो के संकेत
न ही स्वागत समितियाँ, न ही राजनीति विशेष
न ही मेयर और न ऐसे
जिनके लिए काले न कर सकें वोट
और न होगा रंगभेद सबंधी कोई संकेत कहीं भी
क्योंकि होगी यह फ्रीडम ट्रेन तुम्हारी और मेरी!
फिर शायद एंज़ियो में अपनी कब्रों से
पूर्व योद्धा कह उठेंगे ‘हम चाहते थे ऐसा ही!’
काले और गोरे लोग कह उठेंगे, ‘यही है सही!’
‘अपने वतन में उन्हें मिली है ट्रेन
जो है तुम्हारी और मेरी!’
फिर मैं चीख उठूंगा, ‘है गर्व हमें इस पर
है यह फ्रीडम ट्रेन!’
चीखूँगा मैं बजाकर सीटी
फ्रीडम ट्रेन!
शुक्रिया हे प्रभु, शक्तिमान है अब यहाँ
फ्रीडम ट्रेन!
आओ अब सवार हो जाएँ, यह है हमारी फ्रीडम ट्रेन!
- ‘जिम क्रो’ शब्द की उत्पत्ति उन्नीसवीं सदी में अमेरिकी थिएटर के एक अश्वेत चरित्र के नाम से हुई। क्रो यानी काला कौआ। यह शब्द अफ्रीकी मूल के लोगों के निरादर और अपमान के लिए प्रयुक्त था।
संपर्क अनुवादक : 11, सूर्या अपार्टमेंट, रिंगरोड, राणाप्रताप नगर, नागपुर – 440022. मो : 9422811671
अकल्पनीय काव्य-तत्व।नस्लवाद पर इतनी शालीनता से प्रत्यालोचना पहले दिखाई नहीं दी।प्रकृति के कोण और कोणार्क सचेत अभिव्यक्ति में वैसे ही जूझ रहे हैं जैसे जलधि की सुनामी लहरों पर कश्ती किनारे आने के लिए समंदर की लहरों से टकराती-गिरती लेकिन जल-प्लावित नहीं होती है।
फ्रीडम ट्रेन के माध्यम से कवि ने पूरी दुनिया में व्याप्त रंगभेद पर प्रहार किया है।
जिम क्रो जैसी गालियाँ आज भी अश्वेतों, दलितों के लिए प्रयुक्त होती हैं।
फ्रीडम ट्रेन कब आएगी, पता नहीं।
रंगभेद के पिंजरे में कैद, छटपटाती हुई आवाज़ की गूंज है इस कविता में। कवि फिर भी आशान्वित हैं, वह सुबह कभी तो आएगी।