प्रवासी लेखिका। आस्ट्रेलिया में निवास। ‘रजकुसुम’ कहानी संग्रह व ‘चंद्राकांक्षा’ काव्य संग्रह
लड़की वरमाला लिए अपनी सहेलियों के साथ स्टेज पर खड़ी थी। लड़के के यार-दोस्त लड़के को गोद में उठाए हो-हल्ला मचाकर मस्त हो रहे थे। लड़की जैसे ही लड़के के गले में वरमाला डालने को हाथ ऊंचे करती, लड़के के दोस्त उसे गोद में उठा कर और ऊंचा कर देते। लड़की वरमाला डालने में असमर्थ रह जाती। 15 मिनट से नोंक-झोंक चल रही थी।
लड़की के दादाजी सामने पड़े सोफ़े पर बैठे यहकार्य-कलाप देख रहे थे। उनसे अब रहा न गया। वे स्टेज पर चढ़ आए और लड़की की बांह पकड़ उसे स्टेज से नीचे ले जाते हुए बोले, ‘चल बेटी, नीचे चल कर सोफ़े पर आराम से बैठते हैं। हमें लगता है जमाई राजा का अभी वरमाला डलवाने का मन नहीं है। जब इनका मन होगा तो ये खुद नीचे आकर वरमाला डलवा लेंगे। तब तक तू खड़ी-खड़ी क्या करेगी…।’
उनके इतना कहते ही दूल्हा तत्कालस्वयं को अपने मित्रों की गिरफ़्त से आज़ाद कर स्टेज पर खड़ा हो गया। उसने वरमाला डलवाने के लिए अपनी गर्दन झुका ली थी ।
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