युवा कवि। अब तक तीन कविता संग्रह।
स्त्री के हाथ
तमाम रेखाएं धीरे-धीरे धुंधली पड़ जाती हैं
जो कुछ कोमल है वह
घिस जाता है समय के साथ
जिसे देखा था और पहचान गया था उंगलियों से
अब वे उंगलियाँ धूसर हो गई हैं
उन्हें थामता हूँ तो लगता है
न जाने कितनी शताब्दियों पुरानी हथेली छू रहा हूँ
रोज कट जाते हैं स्त्री के हाथ
चाकू बर्तन झारू की नोंक या खिड़की के लोहे से
काई से पत्थर से लकड़ी से रगड़ जाते हैं इस तरह कि
कई दिनों तक उसकी टीस
नींद में भी बेचैन कर देती है
हल्दी और नमक की गंध से
भरी होती है एक स्त्री की हथेली
जिसे देखता हूँ तो पता चलता है
उसने कितना कुछ गंवा दिया समय के साथ
जिसे फिर से हासिल नहीं किया जा सकता
मैं जब भी मिलता हूँ तो देखता हूँ
सबसे पहले स्त्री के हाथ
छूता हूँ तो लगता है कि घर की नींव को छू रहा हूँ
छू रहा हूँ जैसे खुरदरे स्वप्न
जैसे पृथ्वी की हथेली को छू रहा हूँ।
कोई लालसा
राई के दाने की तरह होती है लालसा
एक मुट्ठी में भी असंख्य
जिसे सीने से लगाए
भटकता हूँ समूची पृथ्वी
जीने के लिए किसी धातु का भरोसा काम नहीं आता
चमकीले पत्थर की चमक एक दिन उतर जाती है
जिससे चौंधिया जाती हैं आँखें
वह सब भी एक दिन फीका पड़ जाता है
कुछ भी नहीं जो
एक टूटे हुए मनुष्य को
तिनका तिनका जोड़कर पूरा कर दे
वह काम तो लालसा ही कर सकती है
राई के दाने जैसी लालसा।
नहीं आएगा
नदी का पानी सूख गया
मछलियाँ दब गई मिट्टी के नीचे
धीरे-धीरे बदल गई जगह
ये हवा दूसरी है
ये मौसम अब रेत का बवंडर है
नाव कहीं किनारे में चुपचाप सो गई है गहरी नींद
बच्चे उसके मुहाने पर बैठ कर झूल रहे हैं
चिड़ियाँ चोंच मारकर खोज रही हैं
लुप्त हो गई नदी
नहीं आएगा फिर कोई इसके किनारे
जब तक नदी नहीं आएगी लौटकर
लेकर हहराता हुआ लहरों से भरा पानी।
संपर्क: क्रांति भवन,कृष्णा नगर ,खगरिया -851204 मो. 8986933049
रोज कट जाते हैं स्त्री के हाथ…
उक्त काव्यपुष्प पंखुड़ी बहुत ही मार्मिक यथार्थ परक विराट संदर्भ को प्रस्तुत करने वाली है।
तीनों ही रम्य हैं
बहुत बहुत बधाई!
-गोलेन्द्र पटेल , बीएचयू