साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि। 167 पुस्तकों  के लेखक।

घाव

जहां पेड़ थे
वहां है बंजर जमीन
जहां थी नदी
वहां है रेत
जहां थे घोंसले
वहां बिखरे पड़े हैं तिनके
जहां घर था
वहां है टूटी हुई दीवारें
और ईंटों का संघात
जहां थे शब्द
वहां है मौन का झुंड
श्मशान की शांति
जहां थे वसंत के गीत
वहां अवरुद्ध कंठ में दबा है रुदन
प्रणय के आश्लेष को
छोड़ कर स्वजन
चला जाता है मुंह मोड़ कर
प्रत्येक घाव की
नहीं हो सकती गिनती
वर्तमानपत्रों में छपते नहीं
हर घाव के फोटोग्राफ
किंतु
बहरी त्वचा
पीड़ा से आहत हृदय
टूटा- छूटा मन
शोषित संवेदना
लंगड़ा लहू
बयां कर सकते हैं
घाव से निर्मित रिक्तता का ।

ईश्वर के घाव

मां कहती थी कि
अन्य जीवों को मत कर पीड़ित
हिंसा से दुखी होता है परमेश्वर
मैं पूछता था
कैसे दुखी होता है वह?
तब वह जवाब देती थी
‘प्राणियों की पीड़ा का अनुभव कर के
ईश्वर के हृदय में लगते हैं घाव’
जब बचपन में
मैं खेलते खेलते गिर जाता था
तब मुझे रोते देखकर
मां लगाती थी मरहम
अब तो
सर्वत्र हिंसा-संत्रास का है तांडव
यह देखकर मुझे लगता है कि
सृष्टि की पीड़ा से ईश्वर के हृदय में
गहरे होते होंगे जख्म
शायद
ईश्वर ने अपने घावों पर मरहम लगाने के लिए
बुला लिया है मां को अपने पास ।

[स्वयं कवि द्वारा संस्कृत से अनूदित]

संपर्क: 8, राजतिलक बंगलोज, आबाद नगर के समीप, बोपल,मदाबा 380058