युवा गजलकार।‘वीथियों के बीच’ अद्यतन गजल-संग्रह। सियासी साज़िशों से दोस्ती निभाने मेंशहर बदल न कहीं जाए क़त्लखाने में यहां पे क्रूरता हावी है सबकी करुणा परयहां पे व्यस्त हैं सब कहकहे लगाने में दहक रही है बहुत नफ़रतों की आग यहांझुलस रही हैं मेरी कोशिशें...
युवा कवि।चार साझा ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित। 1. सूखे हुए तटों को भिगोने लगी नदीदुनिया की प्यास देख के रोने लगी नदीपहले निकल के आई निगाहों के रास्तेफिर धीरे-धीरे मुझको डुबोने लगी नदीमीलों चली पहाड़ की पथरीली देह परउतरी ज़मीं पे जैसे ही सोने लगी नदीअंधे विकासवाद का जंगल उगा है...
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