दुनिया न बिकी हुई आत्माओं पर टिकी है : आलोक मिश्र कविता युवा कवि। जे.एन.यू. में एम.फिल. के विद्यार्थी। सोचता हूँआत्मा से सच्चा है क्या कुछदुनिया ने कितनी ही कोशिश कीआत्मा का भी बाजारीकरण हो सकेआत्मा बिकी भीमगर समूची आत्मा कभी कोई नहीं खरीद सकादुनिया इस न बिकी हुई आत्मा पर टिकी हैकिसी शेषनाग के फन पर...
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