डर : अनिल विभाकर

डर : अनिल विभाकर

    चार दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता और निरंतर लेखन। ‘शिखर में आग’ और ‘सच कहने के लिए’ कविता संग्रह। झूठ के पांव नहीं होतेबहुत पुरानी कहावत है यहकहावतें हमेशा पुरानी ही होती हैंबहुत ठोक-ठेठा कर बनती हैं वेउन्हें तय करनी पड़ती है लंबी यात्रा झूठ के पांव...
बातचीत : अनिल विभाकर

बातचीत : अनिल विभाकर

      चार दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता और निरंतर लेखन। ‘शिखर में आग’ और ‘सच कहने के लिए’ कविता संग्रह। पूरे विश्व का है कबीर का करघाकिसी एक की नहीं है रैदास की रांपीखोजो इन्हें कोई तो वजह रही होगीसदियों बाद भी करघा चलातेनहीं बन पाया कोई कबीरनहीं बन...