दो कविता संग्रह, चार व्यंग्य संग्रह प्रकाशित। ‘व्यंग्योदय’ व्यंग्य वार्षिकी का संपादन। सौदागर जी हां !सौदागर हैं वेखरीद लेंगे मुस्कान फेंक कर विश्वासशब्द बिखेर कर भोलापनस्वप्न दिखाकर ईमानपूंजी की चकाचौंध बताकरखुद्दारी खरीद लेंगेलंबा तजुरबा है उन्हेंकिसे बेचकर क्या...
दो कविता संग्रह, चार व्यंग्य संग्रह प्रकाशित। ‘व्यंग्योदय’ व्यंग्य वार्षिकी का संपादन। सौदागर जी हां !सौदागर हैं वेखरीद लेंगे मुस्कान फेंक कर विश्वासशब्द बिखेर कर भोलापनस्वप्न दिखाकर ईमानपूंजी की चकाचौंध बताकरखुद्दारी खरीद लेंगेलंबा तजुरबा है उन्हेंकिसे बेचकर क्या...
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