युवा कवि।अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।फिलहाल खेती बाड़ी, इधर-उधर काम। ये गेहूं के उगने का समय है हर रोज की तरह सूरज पूरब से उगेगाखुला आसमान रहेगा और दूर-दूर से पंडुक आएंगेमैनी चिरैया आएंगीदेसी परदेसी पंछी आएंगेगेहूं की निकली हुई पहली पहली डिभी...
युवा कवि। अभी भी अभी भी लकड़ी का हल चलता है यहांअभी भी हजारों जोड़ी बैलों सेखेतों को जोता जाता हैअभी भी गन्ने के खेतों मेंबहुत रस बचा हुआ हैअभी भी जंगलों मेंजंगली हाथी गरजते हैं बादल से भी तेज अभी भी एक प्राचीन कविकविता की पत्थलगड़ी करता हैजंगलों से जमीनों सेखदेड़े...
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