युवा कवयित्री।संप्रति अध्ययन। मैं उतनी ही नहीं हूँजितना तुममुझे जानते होचंद्रमा के न दिखने वालेहिस्से की तरहआधी मैं अदृश्य हूँहवाओं के साथ बहती हूँरोशनी के हर क़तरे में घुलती हूँपेड़ों से गिरे पत्तों की तरह बीतती हूँफिर लौट आती हूँनए पल्लवों मेंअंधेरे में घुलती हूँआधी...
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