कबाड़ : ज्ञानदेव मुकेश

कबाड़ : ज्ञानदेव मुकेश

‘कबाड़ीवाले भैया, जरा रुकना!’ एक बच्चे ने आवाज दी तो कबाड़ीवाले ने पीछे मुड़कर देखा।एक उदास बच्चा बुला रहा था।कबाड़ी वाला ठेला डगराते हुए बच्चे के पास वापस आया।उसने बच्चे से पूछा, ‘तुम्हें कौन-सा पुराना सामान बेचना है?’ मगर बच्चे ने एक दूसरा सवाल रख दिया, ‘तुम कबाड़ी के...
उसकी खुशी : ज्ञानदेव मुकेश

उसकी खुशी : ज्ञानदेव मुकेश

हम एक विवाह में गए थे।वहां काफी अच्छे इंतजाम थे।हमने नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों से अपनी पेट-पूजा की और संगीत के विविध कार्यक्रमों का जमकर आनंद उठाया।घर आया तो देखा, औरतें बड़ी उदास थीं।मैंने पूछा, ‘क्या हुआ? कितना अच्छा इंतजाम था।’ उन्होंने कहा, ‘लड़की अच्छी नहीं...
सुबह का इंतजार : ज्ञानदेव मुकेश

सुबह का इंतजार : ज्ञानदेव मुकेश

हमारी कार चौराहे की तरफ बढ़ रही थी। मुझे चौराहे पर न जाने कितने रंगों के गुब्बारे दिखे।  रेड सिग्नल पर कार रुक गई। पास ही काले नंगे हाथों में डोर की अंतिम छोर देखकर मैं स्तब्ध रह गया। ये नन्हे अधनंगे बच्चे थे। कड़ी धूप में गुब्बारे बेच रहे थे।  तभी एक बच्चा दौड़ता हुआ...