सुबह कितनी दूर : जाफर मेहदी जाफरी

सुबह कितनी दूर : जाफर मेहदी जाफरी

मैं गलियों से गुजरता हुआ सड़क पर आ गया।हर तरफ रोशनी ही रोशनी थी।मैं टहलता हुआ नदी के तट पर पहुंच गया जिसके दोनों छोर अनगिनत दीयों से जगमगा रहे थे।लोगों के चेहरे दमक रहे थे।तभी मेरी नजर एक बूढ़ी औरत पर पड़ी जो बैठी अपने दोनों हाथों में अपना चेहरा रखे उन जलते दीयों को एक...