वरिष्ठ कवि और चिंतक| अद्यतन कविता संग्रह ‘कौन देखता है कौन दिखता’| रात दिन दिन में है, रात में रात होती हैदरमियान की घड़ी गुमनाम होती है लफ्ज़ मानीखेज़ हो न होंबात निकली किसी के नाम होती है खिड़की-दर-खिड़की खड़ा सोचता हूँचुप-सी रात क्यों बदनाम होती है बेनूर कह गई कल मुझसे...
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