मोहनदास नैमिशराय

मोहनदास नैमिशराय

    सुपरिचित दलित लेखक। पहली दलित आत्मकथा ‘अपने-अपने पिंजरे’ से चर्चित। हाल में ‘एक सौ दलित आत्मकथाएं’ पुस्तक प्रकाशित।     बाइयां मुंह अंधेरे आ जाती हैंपानी भरने बाइयांसीढ़ियों से चढ़ते हुएकितने मंजिल पर हो फ्लैटउनके पांवों को नहीं होता दर्दन ही होती...
जैनेंद्र कुमार समंदर की तरह गहरे थे : मोहनदास नैमिशराय

जैनेंद्र कुमार समंदर की तरह गहरे थे : मोहनदास नैमिशराय

सुपरिचित दलित लेखक।पहली दलित आत्मकथा ‘अपने-अपने पिंजरे’ से चर्चित। हाल में ‘एक सौ दलित आत्मकथाएं’ पुस्तक प्रकाशित।कंकरीट की आलीशान इमारतों से घिरे आज जिस दरियागंज को हम देखते हैं, कौन सोचेगा कि तब के जंगल जैसे परिवेश में चर्चित तथा प्रतिष्ठित कथाकार और चिंतक जैनेंद्र...
केवल यथार्थ का वर्णन करना ही दलित साहित्य नहीं है : मोहनदास नैमिशराय से प्रदीप कुमार ठाकुर की बातचीत

केवल यथार्थ का वर्णन करना ही दलित साहित्य नहीं है : मोहनदास नैमिशराय से प्रदीप कुमार ठाकुर की बातचीत

दलित साहित्य के अग्रणी लेखकों में एक नाम मोहनदास नैमिशराय है।पहली दलित आत्मकथा ‘अपने-अपने पिंजरे’ के लेखक।भारतीय दलित आंदोलन का इतिहास (चार खंड) एक दस्तावेजी काम है, जिस पर उनके अनुभव की छाप है।५ वर्षों तक भारत सरकार के डॉ अंबेडकर प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के सदस्य।वर्धा...
दलित चेतना की नई मंजिलें : मधु सिंह

दलित चेतना की नई मंजिलें : मधु सिंह

प्रस्तुति : मधु सिंह विद्यासागर विश्वविद्यालय, मेदिनीपुर में एम.फिल. की शोध छात्रा। कोलकाता के खुदीराम बोस कॉलेज में शिक्षण। आधुनिक युग विमर्शों का युग है। इस काल में शिक्षा और विज्ञान की प्रगति ने लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत किया है। फलस्वरूप साहित्य में...
माँ, बेटा और क्रांति/ मोहनदास नैमिशराय

माँ, बेटा और क्रांति/ मोहनदास नैमिशराय

मोहनदास नैमिशराय सुपरिचित दलित साहित्यकार और ‘बयान’ के संपादक माँ, बेटा और क्रांति माँ बीमार है और घर में अंधेरा न माँ के चेहरे पर तेज है और ना घर में उजाला जब से बेटे ने क्रांतिकारी झंडा उठा लिया था उसी समय से माँ ने चारपाई पकड़ ली थी माँ के सपने दफन हो गए थे उसी...