युवा कवि। एक ग़ज़ल संग्रह ‘चीखना बेकार है’। १भूख से हैं त्रस्त आंतें, बिलबिलाता पेट हैज़िंदगी जैसे कोई जलती हुई सिगरेट है आदमी तन्हा यहां क्यों जबकि हरदम साथ-साथह्वाट्सएप है, फेसबुक है और इंटरनेट है हर जरूरत के लिए हर सिम्त है इक मार्केटकिंतु खाली जेब है...
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