कविताएं : पल्लवी मुखर्जी कविता तीन साझा संकलन प्रकाशित विलुप्त होती स्त्रियाँ उसने जी लिया थाअपने हिस्से का जीवन शायदउसके पैरों के निशानपगडंडियों पर मिल जाएंगे तुम्हेंउसके पंजों की छाप भीदीवार पर तुम्हें मिलेगीजिसे पाथा था उसने उपले थापते हुएबड़े प्रेम सेबड़े जतन सेबड़े इतमीनान...
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