परितोष कुमार

परितोष कुमार

      इलाहाबाद विश्वविद्यालय में तृतीय वर्ष के छात्र।   आख़िरी सफ़र में गलेगा तुम्हारा अंगूठा तुम उस छोर चलोजहां तुम्हारे पूर्वज चले थेसभ्य समाज चलता है जहांभविष्य में चलो तुमवर्तमान में मैं -प्रतीक्षित कहो वह बातभेदो सीनायह कैसा प्रेम तुम्हाराखुद में भी...