पुरु मालव कविता युवा कवि।ग़ज़ल संग्रह ‘ये दरिया इश्क़ का गहरा बहुत है’।संप्रति – अध्यापन। खर्चे वे निकलते हैं बांबी से सांपों की तरहऔर डंसते चले जाते हैं हमारे वर्तमान कोवे मोड़ जाते हैं कमान की तरहहमारी तनी हुई रीढ़ कोऔर उन्नत शीश को धर देते हैं घुटनों पर वे आते हैं...
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