पिता, रोटी और घर : शालिनी मोहन

पिता, रोटी और घर : शालिनी मोहन

      कविता संग्रह ‘दो एकम दो’। कुछ साल नौकरी करने के बाद स्वतंत्र लेखन। 1-पिता पिता कोबूढ़ा होते देखनाउदास करता है, दुख देता हैपिताकभी बूढ़ा नहीं होतापिताआसमान होता हैजिसके नीचे बैठहम तारे देखते हैं। 2-रोटी आदमीहमेशा भीड़ के पीछेनहीं भाग सकतारोटी के...