संपादकीय जनवरी 2025 – भारतीय ज्ञान परंपरा : स्वच्छंदता की आवाजें

संपादकीय जनवरी 2025 – भारतीय ज्ञान परंपरा : स्वच्छंदता की आवाजें

शंभुनाथ इधर भारतीय ज्ञान परंपरा पर चर्चा जोरों पर है। यह एक अच्छा विषय है, यदि इसे स्थिर और एकरेखीय रूप में न देखा जाए। यदि कुछ भी ज्ञान है, वह एक द्वीप जैसा नहीं हो सकता। हर देश की राजनीति उसकी अपनी होती है, पर ज्ञान उसकी सरहदों से बंधा नहीं होता। एक समय था जब ज्ञानी...
संपादकीय दिसंबर 2024 – प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’ : सौ साल बाद

संपादकीय दिसंबर 2024 – प्रेमचंद की ‘रंगभूमि’ : सौ साल बाद

शंभुनाथ प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ को सौ साल बाद (1924-2024) याद करने का क्या अर्थ है जबकि ‘गोदान’ ने कई दशकों से उसे बौद्धिक पिछवाड़े में डाल रखा है? उसी समय के उनके नाटक ‘कर्बला’ को भी कोई याद नहीं करता। हम जब ऐसी कृतियों पर बात करते हैं जो लंबे समय से चर्चा के...
संपादकीय नवंबर–2024 : कल्पना के अंत से कुछ पहले

संपादकीय नवंबर–2024 : कल्पना के अंत से कुछ पहले

शंभुनाथ ‘मैं कपड़े की तरह बुनता हूँ शब्दों को गहन रात्रि में/यह एक मौन सिंफनी है चांदनी में नहाई हुई!’ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अर्थात मेधाबोट द्वारा यह अंग्रेजी में लिखी गई कविता है। मेधाबोट की रची एक और पंक्ति है, ‘मेरे पास तुम्हारी दुनिया को खत्म कर देने की क्षमता...
संपादकीय अक्टूबर–2024 : हिंसा की अंधेरी गलियां

संपादकीय अक्टूबर–2024 : हिंसा की अंधेरी गलियां

शंभुनाथ आज हर व्यक्ति हिंसा के निशाने पर है और उसका औजार भी! दुनिया में शिक्षा और व्यापार के विस्तार के कारण शांतिप्रिय लोगों की संख्या किसी भी युग से अब ज्यादा है। इसके बावजूद, हर देश में अपराध और हिंसात्मक घटनाओं में न केवल बेतहाशा वृद्धि हुई है बल्कि इन दिनों हिंसा...
संपादकीय सितंबर–2024 : महादेवी : छायावाद की स्त्री आवाज

संपादकीय सितंबर–2024 : महादेवी : छायावाद की स्त्री आवाज

शंभुनाथ 11 सितंबर महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि है। हिंदी में अपने महान साहित्यकारों का स्मरण करने की परंपरा कमजोर है, क्योंकि इसके लिए खुद को थोड़ा भूलना पड़ता है। हम कह सकते हैं कि महादेवी हमारे लिए आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनका काव्य स्त्री मुक्ति और छायावाद दोनों...