कविता की मुक्ति : शिव कुशवाहा

कविता की मुक्ति : शिव कुशवाहा

    युवा कवि।अद्यतन काव्य संकलन ‘दुनिया लौट आएगी’। समय जब पंख लगाकर उड़ रहा होकुछ रिक्तता साल रही हो अंदर ही अंदरजब सब कुछ लग रहा हो फिसलन भरातब कुछ चुक जाने का एहसाससबसे ख़तरनाक दौर की ओरचुपचाप करता है इशारा जैसे बुझता हुआ दीपकअपनी लौ को फड़फड़ाने सेभांप लेता...
दो कविताएं : शिव कुशवाहा

दो कविताएं : शिव कुशवाहा

      कविता संग्रह ‘तो सुनो’ प्रकाशित। संप्रति अध्यापन। 1-दुनिया लौट आएगी निःशब्दता के क्षणों ने डुबा दिया है महादेश को एक गहरी आशंका में जहां वीरान हो चुकी सड़कों पर सन्नाटा बुन रहा है एक भयावह परिवेश एक अदृश्य शत्रु ने पसार दिए हैं अपने खूनी पंजे सिहर...