एक बार मेरी ओर निगाहें उठाकर देखोमैं तुम्हारी आँखों के भीतर थोड़ा-सा हँसूँ।उस हँसी की दुलार से काँप उठेकाँप उठीं तुम्हारी आँखेंतुम्हारी आँखें शर्माएँकाँपूँ मैं रोऊँ, खड़ी रहूँ।तुम्हारी ही तरह एकाकी, व्याप्तसहस्र आँखों, सहस्र भुजाओंअनादि, अनन्त, अजरअपना अस्तित्व लेकर...
पाँच साल पहले यहाँ घड़ी नहीं थीमैं तब आदमी था आज खच्चर हूँ।पाँच साल पहले यहाँ राशनकार्ड नहीं था,मैं तब हवा था, आज लट्टू हूँ*मैं तब मैं था, आज कोड़ा हूँ;जो अपने पर बरस रहा है।मैंने चाँद को देखा, वह बाल्टी भर दूध हो गया।घड़ी मेरे बच्चे के पाँच साला जीवन में आतंक की तरह...
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