‘कैसी लगी बिटिया, भाई साहब?’ ‘सब ठीक ही है…’ ‘तो रिश्ता पक्का समझें..?’ ‘हां…लेकिन…?’ ‘लेकिन क्या भाई साहब…?’ ‘नाक-नक्श, चाल-ढाल, बात-व्यवहार वगैरह तो बहुत अच्छा है।बस एक ही कमी है बिटिया रानी में।’ ‘अब कौन सी कमी है भाई साहब?’ ‘बात करते समय...
एक चिड़िया पेड़ की एक सुंदर डाल पर आकर बैठ गई। -यह पेड़ अच्छा रहेगा मेरे घोंसले के लिए, छायादार और फलदार है।वह खुद से बातें करने लगी।कुछ देर बाद वह उड़ी और चुन-चुन कर तिनके लाकर घोंसला बनाने में जुट गई।उसके साथ दो छोटे-छोटे बच्चे भी थे। यह देखकर पेड़ ने कहा- अरी चिड़िया!...
‘बाबू जी! मंदिर के बगल वाला मकान बिलकुल खंडहर-सा हो गया है।अगर आप सहमत हों, तो उसे मेरे मित्र संतोष बाबू खरीदना चाहते हैं।उसकी मुंह मांगी कीमत भी देने को तैयार हैं।’ ‘वह उस खंडहर क्या करेंगे बेटे?’ पिता ने पूछा। ‘हमें इससे क्या लेना-देना बाबू जी…! वह कुछ भी...
युवा कवि।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।सरकारी सेवा में। चलो उधर से ज़रा गुजर के देखते हैंपानी गहरा है कितना उतर के देखते हैं सुना है ख्वाब दिखाने का हुनर रखता हैएक बार उसे नज़र में भर के देखते हैं तमाम उम्र चलते रहे मंज़िल की चाह मेंसफ़र...
‘भैया..! जरा कंबल दिखाइए।’ ‘कैसा कंबल चाहिए भाई साहब…? कितने तक का दिखाऊं, ओढ़ने के लिए या बिछाने के लिए?’ ‘अपने यूज़ के लिए नहीं चाहिए।’ ‘फिर? भिखारियों को दान-वान के लिए तो नहीं चाहिए न…?’ ‘हां… बिल्कुल सही, दान के लिए ही चाहिए था।’ ‘तो ऐसे कहिए ना...
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