छत : श्रवण कुमार चिहार कविता दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई में शोधार्थी। उन दिनों की बात ही कुछ और थीजब छतें मिला करती थींएक छत से दूसरी छत की महकअपनेपन की आया करती थी सुबह से कोई व्यायाम करतातो कोई तुलसी पर जलचढ़ाता दिखाई देता थाकिताबें लेकर कोईरटता चक्कर काटता नजर...
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