प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की ने महज़ सुकुमार रंगों को ही नहीं सहेजा, उनकी दृष्टि सृष्टि के उस छोर तक गई, जहां जीवन के सबसे दारुण रंग बिखरे थे। यह समय, यह दुख की दारुण बेला जो हमारे सामने है उसमें उनकी यह कविता और प्रासंगिक हो उठी है। दुख की छाया ने सबको...
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