वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार। बाल पत्रिका नंदनकी कार्यकारी संपादक रहीं।

ठंड की कड़-कड़ और कंपकपी और ऊपर से दौड़ती मेट्रो। मेट्रो की लाइन बीच में आ गई वरना तो बाल्कनी से ही खेतों में फैली हरियाली, उगता सूरज, यमुना की एक पतली-सी लकीर, और उसके पार बहुमंजिली इमारतें दिखतीं। इस जगह की कितनी खूबी है, एक ही नजर में मेट्रो, खेत, यमुना, हरियाली सब कुछ देखी जा सकती हैं। और तो और जब आंधी आती है तो तेज-तेज हिलते और एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते पेड़, किसी जंगल का अहसास देते हैं।

सवेरे से अभी तक नीरज दो बार चाय पी चुका था। लेकिन अभी तक उठकर बाथरूम तक नहीं गया था। छुट्टी के दिन वह अकसर जल्दी नहीं उठता है। जब तक मजबूर न हो, वह पड़ा रहता है। ऐसे पड़े-पड़े वह खुद को शहंशाह से कम नहीं समझता।

वह तो भला हो मम्मी का, जो हमेशा सवेरे उठ जाती हैं, अपने और कामों के साथ और जब तक नीरज  मांगता रहता है, बना-बनाकर चाय देती रहती हैं। साथ में झींकती भी जाती हैं – अब उठ जा। फिर जल्दबाजी करेगा और कुछ न कुछ भूल जाएगा। छुट्टी के दिन भी उनका यह प्रवचन चालू रहता है- छुट्टी के दिन तो कम से कम जल्दी उठ जा। कुछ घूम-फिर, योग, एक्सरसाइज कर। और दिन तो यह बहाना रहता है कि टाइम नहीं है। छुट्टी के दिन तो कुछ खयाल कर लिया कर।

कई बार वह नाराज होकर कहती हैं- मैंने कोई ठेका लिया है कि हर वक्त तुम लोगों के काम के लिए दौड़ती रहूं। कामवाली को भी हफ्ते में एक दिन की छुट्टी मिलती है, मगर मैं तो वह भी नहीं ले सकती। पता नहीं भगवान ने यह मां नाम की चीज क्यों बनाई! ऐसे में नीरज चुप लगा जाता। लेटा होता तो सोने का नाटक करता, जिससे मम्मी को लगे कि वह सो रहा है। कुछ कहेगा तो हो सकता है मम्मी के अंदर जलता लावा फूट पड़े और उसी को जला दे। मम्मी को जब गुस्सा आ रहा हो तो चुप्पी में ही भलाई है। 

आज तो इतवार है, वरना तो रोज नीरज दौड़ते-भागते ही तैयार हो पाता है। नाश्ता लेकर मम्मी पुकारती रह जाती हैं, और वह सीढ़ियां उतर जाता है। रात को भी कितनी बार मम्मी उसका खाना मेज पर परोस कर सो जाती हैं। जब वह लौटता है, तो गरम करने के लिए उठती भी हैं, लेकिन अकसर वह मना कर देता है। बाहर से खाकर जो आया होता है। खाने को फ्रिज में रख देता है, जिसे अगले दिन मम्मी को ही खाना पड़ता है। और किसी को यानी कि उसे या पापा को वह बासी खाने नहीं देतीं। पता नहीं ये मांएं किस मिट्टी की बनी होती हैं। दूसरों का छोड़ा खाकर ही इनका पेट भरता रहता है।

खैर, इस वक्त मम्मी रसोई में हैं। पापा अभी तक सैर से वापस नहीं आए हैं। नीरज न उठने का बहाना खोजता है- पापा जब आएंगे तो उठकर दरवाजा खोलूंगा और उठ जाऊंगा। तब तक और कुछ देर रजाई की गरमी में रह लूं। एक यह कुत्ती का जना उपेंद्र है! फिर वह बाल झटकता है। ओह किसी की मां को गाली नहीं देनी चाहिए। पर वह फोन क्यों नहीं उठा रहा। मिस्ड काल देखे होंगे। पता ही नहीं चल रहा है कि घर से कितने बजे निकलना है। देर हो गई तो फिल्म की टिकट भी बेकार हो जाएगी।

-दोपहर में दाल-चावल खाएगा? मम्मी पूछ रही हैं।

-नहीं मां, दोपहर में दोस्तों के साथ खाना है।

घंटी फिर घनघनाई तो वह रजाई को एक ओर खिसकाकर जल्दी से उठा और दरवाजा खोला  और बिना पापा की ओर देखे बाथरूम में घुस गया। बाहर निकला, तो अखबार पढ़ते हुए पापा ने उसकी ओर तिरछी नजर से देखा। फिर वे नजरें झुकाकर अखबार पढ़ने लगे।

बुढ़ऊ है बड़ा चालू, खोलकर सनी लिओनी की तसवीर देख रहा होगा। और दिखा ऐसे रहा है कि कोई धर्म संदेश पढ़ रहा है। नीरज बच-बचकर मुस्कराया। पापा को पता चले कि वह क्या सोच रहा है, तो फौरन कहेंगे निकल जा इस घर से इसी वक्त।  हर वक्त घर से भगाने की धमकी देते हैं और रात में दस बार देखने आते हैं कि ठीक से ओढ़कर सो रहा है कि नहीं। मालूम है, जरा सी देर से लौटे, तो बेचैन होकर गेट पर खड़े हो जाते हैं, और दिखाते ऐसे हैं जैसे लोहे से बने हों। कई बार वह मजाक करता है- आपके इस तरह गेट पर खड़े होने से क्या मैं जल्दी आ जाऊंगा।  

बाल्कनी में जाकर वह फिर उपेंद्र को फोन करने लगा।

उधर से आवाज आई-हां, बोल।

-अरे बोलूं क्या यार, कब से फोन कर रहा हूं। न तू फोन उठा रहा है, न तेरा फोन ही आया। सवेरे से परेशान करके रख दिया। आज का क्या प्रोग्राम है?

-यार आज का नहीं हो पाएगा।

-क्या मतलब। ऐसा क्या हो गया। अब तीन सौ रुपये बट्टे में जाएंगे। टिकट तो खरीद ली न। 

-तीन सौ क्या तीन हजार भी जाएं तो आज नहीं। रुपये ले लेना मुझसे।

-ऐसा क्या हो गया? क्या किसी मिस वर्ल्ड ने बुला भेजा है, जो उसके लिए सब काम छोड़ दिए कि फिर मौका मिले या न मिले। या कोई लड़की पसंद करनी है। साले सब काम क्या आज ही होने थे।

उधर उपेंद्र के हँसने की आवाज सुनाई दी – मिस वर्ल्ड तो तुझे बुला रही होगी। और रही लड़की पसंद करने की बात, मेरे लिए तो तू लड़की पसंद कर लेना। कैसी भी हो, तेरी पसंद मेरी पसंद होगी, आखिर दोस्त है मेरा। कब काम आएगा। फिलहाल तो मुझे मैडम ने बुलाया है।

अरे ये मैडम बीच में कहां से कूद पड़ीं। कौन हैं, क्या कालेज वाली वही मिस गीता। जो खुद को गीत कहकर इंट्रोड्यूस करती थीं। और लड़के उन्हें सामने से आते देखकर गाते थे- आ, तुझको पुकारे मेरे गीत रे।

-कौन गीत, किसका गीत, अजी  वो सब नहीं, मैडम रीता चांद ने बुलाया है।

-अरे रीता चांद जी, वही एजूकेशन मिनिस्टर। उन्होंने बुलाया है। तेरी तो लाटरी खुल गई यार। लेकिन बुलाया क्यों है? क्या पाकिस्तान से बातचीत में तुझे मीडिएट करना है या कहीं मोर्चे पर भेजना है।

-अरे चुप भी रह, घंटा पाकिस्तान। पापा के कालेज में एन्युअल फंक्शन है न। वहां इनवाइट करना है।  आ गईं तो पापा की तो ऐश हो जाएगी। बहुत दिन से ट्राई कर रहे थे, अब कहीं टाइम मिला है, मिलने का। शी इज सो काइंड यू नो।

-तो उन्होंने कहां बुलाया है? दफ्तर या घर पर?

-अरे पागल है। दफ्तर ही बुलाएंगी। घर पर कोई मिनिस्टर क्या ऐसे ही बुला लेता है। उनके पी ए का फोन आया है। बेशक हमने टाइम मांगा था, तो भी बुलाया तो उन्होंने ही है।

-तो यार मुझे भी ले चल। नीरज ने एक्साइटेड होते हुए कहा- इस मौके पर तो मैं तेरा नौकर भी बनने को तैयार हूं। अपनी भी टौर हो जाएगी। हम भी कह सकेंगे कि ऐसे-वैसे नहीं हैं। मिनिस्टर्स के साथ उठते-बैठते हैं।

-अरे भई तीन लोग ही जा पाएंगे- पापा, उनके प्रिंसिपल, और मैं। मैं तो पापा से रिक्वेस्ट करके जबरिया घुस लिया हूं। और मैं मिल लिया तो समझ ले तू भी मिल लिया। हम तो दो जिस्म और एक जान हैं न जानू। वैसे जब मैडम कालेज में आएं तो मिल लेना। तब तक इतनी जान-पहचान तो हो ही जाएगी कि तुझे इंट्रोड्यूस करा दें। अच्छा चल, मिलते हैं। और फोन कट गया।

नीरज का मूड उखड़ गया। साला कमीना, जहां माल-पुए मिलें खुद जाता है, वैसे दोस्ती की डींग हांकता है। दोस्ती की ऐसी-तैसी, स्साला। हरामी। सन आफ ए बिच। ठीक है, खाए जा के मटन, बिरियानी उस मैडम के घर। सोच रहा है, मिनिस्टर है तो बेटा बनाकर गोद में बिठा लेगी। अरे तुझ जैसे हजारों आते-जाते होंगे वहां। नहीं आता तो न आए। गए तीन सौ रुपए तो गए। फिर उसने उपेंद्र को व्हाटसएप किया -यार साथ में फोटो खींचकर जरूर लाना।

फोन बंद हो जाने पर सोचने लगा- अब दो टिकटों का क्या करे। इन बूढ़ों में से किसी एक को तो पटाना ही पड़ेगा। नीरज किचन में जाकर मम्मी के पास खड़ा हो गया। वह रोटी बनाने की तैयारी कर रही थीं। उसे देखकर बोलीं- क्या चाहिए, चाय?

-अरे नहीं। क्या जब किचन में आऊंगा कुछ न कुछ फर्माइश ही करूंगा। फिल्म देखने चलोगी?

-नहीं भई फुरसत नहीं है। सारा काम पड़ा है। वैसे ही कामवाली दो दिन से नहीं आ रही।

-ऐसा क्या काम है। लंच छोड़ दो। बाहर ही खा लेंगे।

-और पापा?

-उनके लिए कुछ बनाकर रख दो।

-खाना तो बन ही गया। मगर तू तो दोस्तों के साथ कहीं जा रहा था। उन्होंने गैस से कुकर उतारते हुए कहा।

-नहीं, हां..  प्रोग्राम कैंसल हो गया। मेरे पास फिल्म की दो टिकट हैं। चलो न मेरे साथ।

– मेरी तो हिम्मत नहीं। खाने के बाद थोड़ी देर आराम करूंगी। पापा से पूछ ले। अगर वह तैयार हों तो उन्हें ले जा।

-नहीं, उन्हें तो धर्मेंद्र के अलावा कोई अच्छा ही नहीं लगता है। आप ही बनी रहो उनकी हेमामालिनी। ओल्ड स्कूल, यू नो।

जरा धीरे बोल, वरना अभी तेरा ओल्ड स्कूल निकाल देंगे। याद रख, अब भी इस ओल्ड स्कूल की आवाज में इतनी ताकत है कि बड़ी-बड़ी दीवारें हिल जाएं। मम्मी ने बरतन सिंक में रखते हुए कहा।

हां, हां, तुम्हें तो वह हमेशा सुपरमैन ही लगते रहते हैं। जालिम बुढ़ऊ। जल्दी बोलो, चलना है? नीरज ने फिर पूछा।

-नहीं, तू ही जा। मुझे पिक्चर-विक्चर में कोई दिलचस्पी नहीं। लौटेंगे तो थकान हो जाएगी। फिर पूरा काम भी है। और पापा यहां अकेले क्या करेंगे।

-कैसी हो, बोरिंग। किचन से किचन में या किचन से बाथरूम में या झाड़न लेकर घर में। हो गया दिन पूरा। और ये तुम्हारा लैला-मजनूं वाला किस्सा कभी खत्म क्यों नही होता। जब देखो तब पापा, पापा, पापा। या फिर किचन, किचन, किचन।

-मैं तो चालीस साल से यही सब कर रही हूं। तू एक महीना ही करके दिखा दे। सब काम वक्त पर चाहिए तो कोई तो करेगा। या कि इधर हुक्म देगा और उधर अपने आप सब हो जाएगा।

-देखना एक दिन ऐसा ही हुआ करेगा। जैसे अब आन लाइन आर्डर दिया, घर सामान आया। तब भी इधर गैस को आर्डर दिया या माइक्रोवेव से कहा और मनपसंद खाना तैयार।

-ठीक है, फिर खाना खाने के लिए मुंह चलाने की भी क्या जरूरत। कहा और हो गया। मम्मी हँसीं-तुम्हीं रहना ऐसी निकम्मी दुनिया में। 

-मैं क्यों तुम भी रहना। दोनों मां-बेटे ऐश करेंगे।

-हां, कल बीवी आए तो बताना। तब पता चलेगा। झाड़ू मारकर निकाल देगी।

-जब आपने पापा को नहीं निकाला तो वह मुझे कैसे निकालेगी। और झाड़ू होगी तब न मारेगी। वैक्यूम क्लीनर पहले से ही लाकर रख दूंगा।

-पापा की शादी मुझसे हुई थी समझा। सब सह लिया। आज कोई सहता नहीं है।

-तो अपनी-सी ही कोई ढूंढ़ देना। लेकिन नहीं, नहीं तुम्हारी जैसी पकाऊ नहीं चलेगी।

-चलेगी तो तब न जब मिलेगी। वैसा सांचा भगवान ने बहुत पहले ही तोड़ दिया। शादी से पहले ही तोड़ देता तो कितना अच्छा होता। न रहता बांस न बजती बांसुरी। –

-वाह मम्मी, अपनी तारीफ करना तो कोई तुमसे सीखे। अल्लाह मियां ने भी बस उस सांचे से एक नमूना बनाया और फिर दे मारा दीवार में कि अरे ये लड़की बनाई या कि डायनोसोर की कोई बेटी!

मम्मी को भी हँसी आ गई। बोलीं -सच सुनना किसी को पसंद कहां। सच कहा तो तुझे तारीफ लगी। ऐसे ही होते हैं लड़के। उन्हें अपनी मां में कोई खूबी कभी दिखाई ही नहीं देती।

-लो हो गईं शुरू। ये विक्टिम कार्ड खेलना बंद करो यार। रिकार्ड घिस गया है। वैसे भी रिकार्ड का जमाना तो गया। अब गाना सुनना हो तो बेबी, मोबाइल पर सुना करो। कहता हुआ नीरज बाथरूम में घुस गया। वहां से चिल्ला-चिल्लाकर गाने लगा- आओगे जब तुम साजना। नल की धार में उसे अपनी ही आवाज गूंजती लगी।

बाहर निकला तो मम्मी पापा से कह रही थीं-आज पांडे जी की क्रिया है। जल्दी नाश्ता कर लीजिए, फिर वहां जाना है।

-बनता तो नहीं है जाना। पापा अपनी टोपी टेढ़ी करते हुए बोले। ये पापा भी। सोएंगे तो भी टोपी सिर पर विराजमान रहेगी। टोपी न हुई गुजरे जमाने की प्रेमिका हो गई। नीरज ने सोचा।

मम्मी कह रही थीं-क्यों भला जाना नहीं बनता।

-वह कहीं आते-जाते थे? किसी शादी, ब्याह, मुंडन यहां तक कि बीमारी-हारी में भी। हमने बुलाया भी तो कभी नहीं आए। इतना अहंकार भी किस काम का। पापा ने धीरे से कहा।

-कोई बात नहीं, उनका किया उनके साथ। हमें तो जाना ही चाहिए। नहीं गए तो सब क्या कहेंगे।

-तुम्हारी जिंदगी इसी में गई कि सब क्या कहेंगे। सब क्या कहेंगे, जिसको जो कहना है वह तो वैसे भी कहेगा, किस-किसका मुंह पकड़ेंगे। पर चलो, तुम कहती हो तो ठीक है। चलेंगे।

नीरज ने बाल काढ़े। कपड़े पहने। फिर आकर बोला-लाओ नाश्ता- मैं रात तक लौटूंगा।

-फिल्म तो दोपहर तक ही खत्म हो जाएगी। फिर कहां जाएगा? मम्मी ने पूछा।

-बहुत सवाल करती हो मां। क्या-क्या बताया करूं। जितना बता दिया, उसी में खुश रहा करो। जिन दोस्तों से दोपहर में मिलना था, उनसे शाम को मिलूंगा।

-फिल्म खत्म हुई। क्या फिल्म थी, न सिर न पैर। बच गया उपेंद्र। इतने बड़े-बड़े नाम और काम जीरो। नीरज बाहर निकला तो उसने देखा कि उपेंद्र ने रीता चांद के साथ कई फोटो व्हाट्सएप पर भेजे थे। लिखा था- मिशन इमपासीबिल इज सक्सेसफुल।

साले की क्या लाटरी लगी है। देखो तो, बगल में तो इस तरह खड़ा है हरामखोर कि गर्लफ्रेंड के साथ भी कोई खड़ा न हो।

अगले दिन लंच में आफिस में नीरज ने प्रियंका को फोटो दिखाया और कहा-कल तो अपनी लाटरी लग गई।

-कैसे ।

-कल रीता चांद जी ने बुलाया था।

-रीता जी कौन।

-अरे वही अपनी रीता चांद। एजूकेशन मिनिस्टर।

-ओह ग्रेट। अच्छा मगर फोटो में तुम तो दिख ही नहीं रहे।

-मैं थोड़ा आगे निकल गया था, जब फोटो लिए गए।

-जान-बूझकर तुम्हें छोड़ दिया लगता है। कहकर प्रियंका खिलखिलाई। नीरज को लगा कि शायद उसका झूठ पकड़ा गया है।

शाम को दफ्तर से बाहर निकलते हुए दीपक मिल गया। उसके हाथ में थापर का बैग था। नीरज ने पूछा-शापिंग करके आए हो?

-हां।

-क्या खरीदा थापर से।

उसने पास आकर धीरे से कहा-थापर से कुछ नहीं खरीदा है। जनपथ से लिया है। सौ-सौ रुपये के स्वेटर। थापर का बैग तो पहले से अपने पास रखा था। उसमें रख लिए। किसी को क्या पता चलेगा।

सब यही समझेंगे कि थापर से खरीददारी करके आ रहा हूं। दुनिया को दिखाने के लिए ऐसा ही करना पड़ता है। एक की चीज सौ की बतानी पड़ती है। इसे कहते हैं स्मार्ट स्ट्रेटेजी, वरना दुनिया बेवकूफ समझती है। फिर वह अपनी ही चतुराई पर जोर से हँसा। और तुम सुनाओ।

-अरे क्या बताऊं, लाइफ बड़ी बिजी हो गई है। कल संडे था, छुट्टी का दिन, फिर भी पूरे दिन घर में नहीं था।

-अच्छा कहां गए थे। गर्लफ्रेंड के साथ डेट पर?

-अरे कौन सी गर्लफ्रेंड, कहां की गर्लफ्रेंड। सवेरे -सवेरे रीता चांद जी के पी ए का फोन आ गया था। उन्होंने कहा कि मैडम मिलना चाहती हैं।  फौरन बुलाया है।-नीरज ने कहते हुए आंखें मटकाईं।

-अच्छा, क्यों भला। तुझे क्यों बुलाया था? एजूकेशन मिनिस्टर को तुझसे भला क्या काम?

-कुछ नहीं, वह चाहती थीं कि मैं उनकी पार्टी के लिए काम करने लगूं। बहुत दिन से उनके पी ए का फोन आ रहा था। मैं ही नहीं समझ पा रहा था कि क्या करूं। क्यों मेरे पीछे पड़े हैं। मैं इन पालिटिशियंस के चक्कर में कभी नहीं पड़ता। इन नेताओं से दूर रहना चाहिए। लेकिन जब पी ए का फोन बार-बार आ रहा था, तो क्या करता। आखिर किसी लल्लू-पंजू ने नहीं, मिनिस्टर ने बुलाया है तो जाना ही पड़ेगा। मिनिस्टर है, कोई आपके साथ गुल्ली-डंडा खेलने वाली तो है नहीं। वैसे भी मिनिस्टर को मैं तो क्या, अपनी कंपनी का मालिक भी ‘ना’ नहीं बोल सकता।

-हां, सो तो है मगर तू भी पार्टी-पालिटिक्स करता है, पता नहीं था। आखिर उन्हें कैसे मालूम चला इस बारे में कि तू उनकी पार्टी के काम का हो सकता है। वरना ये लोग तो आसानी से अपने रिश्तेदार तक को नहीं पहचानते।

-पता नहीं बताया होगा किसी ने। कह रही थीं कि पार्टी को आप जैसे सिंसियर लोग ही चाहिए। और तो और उन्हें ये तक मालूम था कि मेरे पापा कहां काम करते हैं, घर में कौन-कौन है। मैं तो उनके होमवर्क से चकित रह गया। उनकी इंटेलीजेंस का मुरीद हो गया। पहले तो मैंने सोचा कि मना कर दूं। कौन पड़े झंझट में। वैसे भी इन बड़े लोगों से दूर रहना चाहिए। मगर पापा ने कहा कि ऐसी किस्मत क्या सभी की होती है कि मिनिस्टर मैडम खुद बुलाएं। मुझे भी लगा कि कहीं मना करूं, तो नाराज न हो जाएं। फिर नीरज ने उसे वे फोटो दिखाए जो उपेंद्र ने भेजे थे।

 दीपक उन्हें उलट-पुलटकर देखता रहा। फिर बोला-मगर तू इनमें कहां है?

-जब फोटो खींचे जा रहे थे तो मैं दूसरी तरफ हो गया था। मुझे इस तरह की पब्लिसिटी चीप लगती है। वैसे भी मिनिस्टर के साथ दिखो तो दोस्त कम दुश्मन ज्यादा बनते हैं। और मैं तो भगवान की तरह वहां कण-कण में था। पहचानने वाले पहचान ही लेंगे।

-इसमें चीप की क्या बात है। यादें रह जाती हैं, बस। और तू कोई झूठ तो बोल नहीं रहा है। वहां गया था और फोटो भी होते तो क्या बुरा था। दीपक ने तिरछी मुस्कराहट से कहा।

-अब याद क्या रखना। मैडम से तो अब रोज ही मिलना होगा। फिर खिंच जाएंगे। एक फोटो क्या पूरी फिल्म ही बन जाएगी। और वीडियो तो अब रोज की बात ही होंगे। 

-तो हो सकता है कल तू एम पी, एम एल ए, भी बन जाए। मैडम की पार्टी तुझे ही टिकट दे दे। ऐसा हो तो मैं भी तेरे लिए काम करूंगा।

-अब आगे का क्या पता। तुझे तो पता है मैं जो काम करता हूं, वह बिना किसी लालच के। देश सेवा करनी हो तो लालच को बीच में नहीं आना चाहिए। जो लोग किसी लालच के लिए पालिटिक्स में जाते हैं, उनका यकीन कौन करता है। सब उनको देखते ही समझ जाते हैं कि वे अपने मतलब के लिए यहां हैं। मतलब खत्म तो बात खत्म। नीरज ने धूप का चश्मा चढ़ा लिया।

यार बड़ा आदमी बन जाए तो हमें मत भूल जाना। हमें भी किसी दिन मैडम के दर्शन करा देना। हम भी उनकी पार्टी के लिए काम कर देंगे। वोट दे देंगे। ऐसे मौके क्या रोज मिलते हैं। दीपक अचानक अनुनय से भर उठा।

-अरे यह भी कोई कहने की बात है। हम तो यारों के यार हैं। जहां हम, वहां हमारे यार-दोस्त। खूब मिल-बैठ के मस्ती करेंगे।

-तो फिर नौकरी का क्या करेगा। छोड़ देगा।

-अब यह सब तो ऊपरवाला जाने या मैडम। वो जो कहेंगी वह तो करना ही पड़ेगा। हमारी तो मां जैसी ही हैं।

-सो तो है। दीपक ने हां में हां मिलाई।

-मगर तू इस बात को अभी अपने तक ही रखना। मैं नहीं चाहता कि सब इस बारे में बातें करें। नीरज ने कहा।

-अरे मान ले कि तूने मुझे कुछ बताया ही नहीं। बताया भी, तो मैंने सुना नहीं। मुझे यह बात मालूम ही नहीं। मैं तुझसे मिला ही नहीं। तूने मुझसे कुछ कहा ही नहीं। वैसे भी मेरी मम्मी कहती हैं कि मेरा पेट ऐसा घड़ा है जिसमें कोई बात जाती है तो बाहर ही नहीं निकलती है कभी। चल अब चलता हूं। कल तो दफ्तर आ रहा है न। कहता हुआ दीपक आगे बढ़ गया।

-हां, हां चल कल मिलते हैं।

दीपक के जाने के बाद नीरज का मन किया कि खूब जोर से हँसे। पर कहीं वह दफ्तर में न कह दे। और सब गुड़ गोबर हो जाए। लोग समझ लें कि वह इतनी बड़ी अपरच्युनिटी मिलने के बाद भी इस फटीचर से आफिस में क्यों नौकरी करेगा। जहां कईकई साल तो इन्क्रीमेंट के लाले पड़े रहते हैं।

अप्रेजल के वक्त कंपनी अकसर बहुत गरीब हो जाती है और बुरे टाइम को फेस करने के लिए कहने लगती है। बुरा टाइम माने नो इऩ्क्रीज। मम्मी के शब्दों में ठन-ठन पाल, मदन गोपाल।

शाम को जब नीरज घर पहुंचा तो मम्मी ने बताया कि मौसी आने वाली हैं। लो एक और चाटू से पाला पड़ा – नीरज ने सोचा।

मौसी ने आते ही सबकी कुंडली मिलानी चालू की। नीरज से अपने बेटे आलोक के बारे में कहने लगीं कि वह तो हर रोज कितने बड़े-बड़े आदमियों से मिलता है। तो नीरज ने भी शान बघारी कि वह भी रोज मिनिस्टर रीता चांद से मिलता है। उनका तो पर्सनल नंबर भी उसके पास है। जब चाहे फोन कर सकता है। मैडम उसे अपना बेटा मानती हैं।

उसकी बात सुनकर मौसी बड़ी आंखों से उसे देखने लगीं-क्या सच कह रहा है?

-तो और क्या झूठ। ये देखो फोटो।

मौसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि वह फोटो में नहीं है। बोलीं-तब तो समझो आलोक की बात बन गई। अपने भाई को भी अपने साथ लगा ले। इतने दिनों से कुछ काम-धाम ठीक नहीं चल रहा है।

-अरे, अभी तो आप कह रही थीं कि वह रोज बड़े-बड़े आदमियों से मिलता है।

बड़े आदमियों से मिलने से क्या पेट भरता है। उसके लिए तो रोटी चाहिए। और रोटी के लिए ठीक-ठाक ऐसी नौकरी चाहिए जिसमें हर महीने पैसे मिल सकें -मौसी सच बोलीं।

-ठीक है उसका सी वी भेज देना । मैं मैडम को दिखा दूंगा।

-सी वी क्या, मैं उसे ही भेज दूंगी – मौसी को आलोक को काम से चिपकवाने की जल्दी थी। लेकिन वायदा करना पड़ेगा कि तू अपने भाई की मदद करेगा।

-उसे तो तब भेजना जब मैं कहूं। पहले काम की बात तो होने दो – कहता हुआ नीरज उठ गया। इन जैसी चेप मौसी से भगवान बचाए। गलती से किसी का नाम भर मुंह से निकल जाए तो फौरन एक काम सौंप देती हैं।

मौसी जब नहाने चली गईं तो मम्मी बोलीं- मुझे तो तूने आज तक बताया नहीं कि तू रीता चांद मैडम से रोज मिलता है। इतनी बड़ी बात हमसे क्यों छिपाई? हम क्या मिलने से मना कर देते?

-अब तुम्हें क्या -क्या बताया करूं।

तो उनसे पहले अपने लिए एक ठीक-ठाक नौकरी मांग ले। इसके सामने कहने की क्या जरूरत थी कि तू उन्हें जानता है। यह तो वैसे ही एक नंबर की मतलबी है। जब काम निकल जाए तो किसी को पहचानती तक नहीं। वैसे कहने को मेरी सगी बहन है। इसे किसी बहाने से टाल देना। एकदम बिगड़ैल है, इसका लड़का। न जाने कितने आल-फाल में है। यहां आकर हमारी और नाक में दम करेगा। वैसे उसके बारे में जब से आई है इतनी गप्प की टल्ल हांक रही है। और जैसे ही किसी बड़े का नाम सुना, उसे नौकरी दिलवाने की बात करने लगी। क्या सोचेंगी रीता चांद तेरे बारे में।

नीरज को लगा कि बस बात बन गई। एक बार रीता चांद के साथ एक फोटो खिंचवा ले तो, कहीं का कहीं पहुंचेगा। लेकिन इसका जुगाड़ कैसे होगा। उपेंद्र के पापा के कालेज में जब आएंगी तभी किसी तरह से उनके साथ एक फोटो खिंचवानी है। बस एक फोटो। और वह एक फोटो क्या-क्या कमाल करेगी कि नीरज की तकदीर बदल देगी। और नीरज ढेर से सपने देखने लगा। वह रीता चांद के साथ सपनों की गाड़ी में सवार हो गया और उड़ान भरने लगा। उसके चारों ओर फोटो ही फोटो उड़ रहे थे।

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