5अगस्त 1950को चन्देरी (.प्र.) में जन्म। गजलकार के रूप में अधिक परिचित। कुल ग्यारह गजल संग्रह प्रकाशित।एक टुकड़ा धूप, भीड़ में सबसे अलग, पेड़ तनकर भी नहीं टूटा जैसे गजल संग्रह काफी चर्चित हुए। हाल ही में कोरोना से अकाल मृत्यु।

1 जून, 2020 से अनलॉक-1 घोषित हो गया।

रामचरण को 3 जून की दोपहर तक गांव से निकल कर नवादा रेलवे स्टेशन पहुंचना था, जहां से उसकी ट्रेन अहमदाबाद जाने वाली थी। 2 जून को सुबह दस बजे रामचरण ने सोचा, फिर अहमदाबाद लौटने के विषय में कम से कम दद्दा को तो बता ही दिया जाए। अपनी खपरैल से निकल कर रामचरण पौर में प्रविष्ट हुआ, जहां बीमार दद्दा लेटे हुए थे। रामचरण ने पैर छुए तो पिता खटिया पर उठ कर बैठ गए, बोले, ‘बरसों बाद, तुम्हारे पूरे परिवार को सकरौली में देख कर बूढ़ी आंखों को कितना भला लगता है? छोटी बहू की बातों का बुरा मत मानना, वैसे वह मन से बहुत अच्छी है!’

छोटी बहू प्रकरण की अनदेखी करते हुए, रामचरण ने कहा, ‘दद्दा, कल सुबह मैं और रामकिशन (बेटा) अहमदाबाद लौट रहे हैं। तुम्हारी बहू और सुगनी सकरौली में ही रहेंगी।’

‘क्यों…. क्यों?’ बूढ़े ने हड़बड़ाते हुए पूछा, ‘उस नर्क में तुम फिर क्यों लौट रहे हो! महीना भर पहले पृथकवास में रहते हुए तो तुमने फिर शहर न जाने की कसम खाई थी?’

तब तक पौर में छोटा भाई रामशरण भी आकर बैठ गया। रामचरण ने अहमदाबाद लौटने का कारण बताते हुए कहा, ‘दद्दा, 68 दिन लंबे लॉक-डाउन के दौरान पैदल चलने के ढेर सारे कष्ट। उसके बाद, श्रमिक स्पेशल ट्रेन की असुविधाजनक पचास घंटे लंबी यात्रा मेरे परिवार ने यह सोच कर पूरी की थी कि सकरौली में पिता हैं, एक ही माँ का जाया भाई है। गांव में आधी-आधी रोटी भी मिलेगी तो मिल-बांटकर खा लेंगे। लेकिन हप्ता भर पहले छोटी बहू की खरी-खोटी सुन कर लगा, हम अहमदाबाद में ही क्यों नहीं मर गए?’

रामशरण ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, ‘भैया, मैंने तुमसे और भाभी से कुछ कहा? रुकमिनी तो शुरू से ही ऐसी है, उसकी बात का घर में कोई बुरा नहीं मानता।’

रामचरण ने कहा, ‘उसकी बात का हमारे परिवार ने भी बहुत बुरा नहीं माना। लेकिन अपने गांव में अगर नरेगा का भी जॉब कार्ड पैसा ले कर बन रहा है, तो फिर वे गाँव वाले पुश्तैनी आपसी संबंध किधर गए?’

रामशरण बोला, ‘भौजी का नरेगा कार्ड तो बन गया है। आपके लिए भी हम लोग लगे हैं, बन जाएगा। पंचायत भवन भौजी को ले कर चले जाना, कार्ड उनके दस्तखत से ही मिलेगा।’

दद्दा ने बीच में प्रश्न किया, ‘राम अचानक ये तुम्हें अहमदाबाद जाने की क्या सूझी?’

‘दद्दा पांच दिन से लगातार अहमदाबाद से सेठ का फोन आ रहा था। मेरे लाख मना करने के बाद भी, उसने मेरा और बेटे का रिज़र्वेशन करा दिया। कह रहा है- तुम्हारे बिना यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सकता। साइट के पास रहने को जगह दे रहा है। दिहाड़ी भी बढ़ा कर देगा। ….मैंने सोचा- कहाँ नरेगा के दो सौ रुपए रोज़, कहाँ हैड मिस्तरी के आठ सौ रुपए, बेटे को भी पांच सौ मिलेंगे।’

‘लेकिन भैया अहमदाबाद में तो अभी भी कोरोना फैला हुआ है?’

बड़े भैया ने स्वर को थोड़ा तुर्श बनाते हुए कहा, ‘अहमदाबाद वाला कोरोना निकट के रिश्तों में लगे कोरोना से कम घातक है। छोटू ऐसा करो भाभी को बुला दो, पंचायत भवन जा कर जॉब कार्ड ले आएं।’

उसके बाद, सुगनी की माँ और रामचरण पैदल-पैदल पंचायत भवन की ओर निकल गए। नरेगा का कार्ड लेकर पति-पत्नी सुदूर तालाब के किनारे पीपल की छांह में जा बैठे। दोनों को एकांत में कुछ जरूरी बातें करनी थीं।

सावित्री ने पति को निहारते हुए प्रश्न किया, ‘उस हरामी सेठ ने इतनी जल्दी तुम्हें कैसे मना लिया? लॉकडाउन के बाद तो तुम्हारा फोन ही नहीं उठाता था। अगर मुआ पैसे दे देता तो हम अहमदाबाद से दर-ब-दर क्यों होते?’

रामचरण ने पत्नी को विस्तार से समझाते हुए कहा, ‘हम लोग गुजरात से परिवार के विषय में जो कुछ सोच कर चले थे, उसका अगर पचास प्रतिशत भी सकरौली में दिखाई देता तो, सावित्री, मैं अहमदाबाद लौटने का निर्णय नहीं लेता। …तुमने ससुराल आकर अपने बेटे की तरह रामशरण को पाला, उसको बड़ा किया। दस साल तक कभी दद्दा की बीमारी तो कभी बीज, फसल या परिवार के अन्य खर्चों के लिए रामशरण तुमसे ही अपनी कठिनाई बताकर पैसा मांगता रहा। तुम मुझ पर दबाव बनाकर, सकरौली पैसे भिजवाती रहीं। उन पैसों और मेरे हिस्से की उपज के बल पर रामशरण ने अपने हिस्से की पटौरें तो पक्के कमरों में तब्दील कर लीं। आज हम लोग मुसीबत में सकरौली आए हैं तो हमें कच्ची पटौरों में रहना पड़ रहा है।’

सावित्री ने पश्चाताप-सा करते हुए पति से कहा, ‘मैं नहीं जानती थी रामशरण अपनी पत्नी का इतना पिछलग्गू है।’

माँ की याद करते हुए रामचरण बोला, ‘आज अगर अम्मां जिंदा होती तो वह जरूर न्याय की बात करती। दद्दा तो छोटी बहू का ही पक्ष लेते दिखाई देते हैं।’

‘वह सब तो ठीक है, सुगनी के पापा! पहले तो मुझे यह समझाओ कि सेठ से तुम्हारी क्या डील हुई है?’ –सावित्री ने पूछा।

‘सेठ के लगातार पांच दिन तक मनाने के बाद, मैंने उससे कहा- मेरे बैंक एकाउंट में लॉकडाउन के दो महीनों की तन्ख्वाह भिजवाओ, सेठ ने तीस हज़ार रुपए खाते में डाल दिए हैं। ट्रेन का टिकिट कटवा दिया है। साइट के निकट, मेरे और रामकिशन के रहने का प्रबंध कर दिया है। मेरी और किशन की दिहाड़ी बढ़ा दी है। वह किसी भी शर्त पर हेड मिस्त्री के रूप में मुझे अहमदाबाद बुलाना चाहता है’,रामचरण ने समझाया।

सावित्री कुछ सोचते हुए बोली, ‘फिर तो ठीक है, लेकिन सुना है अहमदाबाद में कोरोना अधिक पैर पसार रहा है?’

तब तक, मम्मी को ढूंढता हुआ रामकिशन तालाब तक आकर पीपल की छांव में बैठ गया, बोला कुछ नहीं। सावित्री के प्रश्न का उत्तर देते हुए रामचरण बोला,

‘पेट भरने को घर से निकलना तो पड़ेगा। सकरौली में भी सैकड़ों प्रवासी मजदूर नरेगा में काम कर रहे हैं। उनमें अगर एक भी संक्रमित होगा तो हजारों लोगों को कोरोना लग सकता है। कोरोना बीमारी ही ऐसी है। गरीब आदमी डर कर कब तक घर में बैठ सकता है! मैं और किशन अपनी ओर से गुजरात में पूरी सावधानी बरतेंगे। कुछ निर्णय हमें ईश्वर पर भी छोड़ना चाहिए।’

बीच में, रामकिशन ने पापा से एक अलग तरह का प्रश्न कर डाला, ‘अगर गांव की चार बीघा जमीन आपकी है तो क्यों न हम उसे बेच कर अहमदाबाद चलें?’

‘देखो बेटा, अब हम लोग अपने गांव… अपनी जमीन पर भी जड़ों से उखड़े हुए पेड़ हैं। आज की सकरौली में हम लौटकर भी अपनी जड़ सहित खड़े नहीं हो सकते। तुम्हारे चाचा-चाची की राजनीति के सामने हम लोग नहीं टिक पाएंगे। गांव के लोग उनके साथ हैं। ….जमीन मैं इसलिए नहीं बेच सकता, क्योंकि अभी तक वह कागजों में दद्दा के ही नाम दर्ज है। फिर दद्दा और रामशरण किसी बाहरी खरीदार को जमीन बेचने नहीं देंगे।’

पिता की बात सुन कर रामकिशन चुप हो गया।

चुप्पी तोड़ी सावित्री ने, पूछा, ‘किशन के पापा, जब तुम गुजरात जा ही रहे हो तो मैं और सुगनी गांव में क्या करूँगी?’

बहुत भावुक होते हुए रामचरण ने उत्तर दिया, ‘सावित्री, तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं हूँ। जीवन में मैं आज तक जो कुछ भी कर पाया हूँ, उसके पीछे हमेशा तुम रही हो। दो-तीन महीनों के अंदर मैं साइट के पास ही कोई किराए का कमरा कबाड़ लूँगा, उसके बाद तुम और सुगनी भी अहमदाबाद आ जाना। ….और सुनो, खाते में पैसों वाली बात परिवार में किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। आज मैं और किशन परचून का पूरा सामान खरीद कर पटौर में रख जाएंगे। कल से तुम और सुगनी अपने चूल्हे पर बना भोजन करोगी। समझे!’

‘अगले दो-चार महीने क्या गुजरात से पैसे भेजोगे?’ –सावित्री ने पूछा।

‘नहीं’, रामकिशन ने बात को आगे बढ़ाया, ‘मैं एटीएम कार्ड तुम्हारे पास छोड़ जाऊँगा। सुगनी को पैसे निकालना आता है। जब भी जरूरत हो, चुपके से पास के गांव सिंगरौली जा कर मां-बेटी पैसे निकाल लाना। लेकिन, इन लोगों को कार्ड का पता नहीं चलना चाहिए। जब मन करे, नरेगा में इसलिए काम कर लिया करना, ताकि इन लोगों को लगता रहे- घर का खर्च नरेगा से चल रहा है। हमेशा पैसे की कमी का रोना रोती रहना।’

दोपहर हो चुकी थी। भोजन के लिए ढूंढता-ढूंढता रामशरण भी पीपल की ओर आता दिखाई दिया, बातचीत बंद हो गई। आते ही रामशरण ने शिकायत की, ‘भौजी, आप लोगों को मैंने कहां नहीं ढूंढा, दद्दा भी परेशान हैं। भोजन बन गया है, चलो, सब मिल-बैठ कर खाएंगे।’

पूरे परिवार के साथ भोजन पाने के बाद रामचरण अपने बेटे को ले कर महीना भर के लिए परचूनी का सामान खरीदने निकल पड़ा। आधे दिन की भाग-दौड़ के बाद, सावित्री की नई गृहस्थी का पूरा प्रबंध कर दिया गया।

3 जून को सावित्री मुंह-अंधेरे जाग कर, रामचरण और रामकिशन के लिए ट्रेन में भोजन-पानी का प्रबंध करने में जुट गई। सुबह सात बजे तक पिता-पुत्र उनींदे दद्दा जी के पैर छू कर नवादा की ओर निकल गए।

चूँकि पति और बेटे के भोजन के साथ ही, सावित्री और सुगनी का भी खाना बन गया था, इसलिए 3 जून को ही सावित्री जॉब कार्ड लेकर नरेगा की साइट पर चली गई।

लोकल बस से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पिता-पुत्र सुबह दस बजे नवादा पहुंच गए, जहाँ उनकी ट्रेन का समय बारह बज कर तीस मिनिट था। एक बजे तक नवादा के प्लेटफॉर्म नं. तीन पर रामचरण की ट्रेन ने आवक दी, एस-2 में दोनों का रिज़र्वेशन था। अनलॉक-1 के बाद भी, ट्रेन में देह का तापमान लेते हुए उतनी ही सवारियों को प्रवेश मिला, जिनका कन्फर्म्ड रिज़र्वेशन था। हालाँकि ट्रेन के बीच की बर्थ पर यात्री टिकिट होने के कारण देह से दूरी का वैसा पालन नहीं हो पाया, जैसा पिता-पुत्र से नवादा जाने वाली बस में करवाया गया था।

सावित्री की हिदायत का पालन करते हुए, बाप-बेटे दोनों ने उसी खाने पर गुजर-बसर की जो सकरौली से पैक किया गया था। दो-दो लीटर की दो पानी की बोतलों ने भी दोनों का नवादा से अहमदाबाद तक साथ दिया। चौबीस घंटे लंबी सुविधाजनक यात्रा के बाद बाप-बेटे अहमदाबाद मेन स्टेशन के प्लेटफॉर्म नं. छह पर सकुशल उतरे। स्टेशन के बाहर निकले तो सेठ के ड्रायवर ने आगे बढ़कर नमस्कार किया।

कार द्वारा रामचरण और बेटा दोनों आईक्यू के बैचलर्स रूम तक पहुँचा दिए गए।

अगले दिन, कंस्ट्रक्शन साइट पर सेठ से मुलाकात हुई। सेठ ने साइट पर विशेष रूप से रामचरण का स्वागत किया। चूँकि इस साइट पर रामचरण का पूरा परिवार पिछले एक साल से काम कर रहा था, इसलिए पिता-पुत्र में से किसी को भी असुविधा नहीं हुई। धीरे-धीरे आर्किटेक्ट और सिविल इंजीनियर के निर्देशन में भवन का निर्माण कार्य गति पकड़ने लगा।

उधर बड़े शहर का निर्माण अनुभव होने के कारण, सावित्री ने भी सकरौली की नरेगा साइट पर अपनी जगह बना ली। उसे लगातार काम मिलने लगा। सुगनी कक्षा एक से पांच तक के कमजोर बच्चों को सकरौली में मुफ्त शिक्षा देने लगी। सुबह-शाम नियम से रामचरण और सावित्री की बात हो जाती थी।

तीन महीने के अंतराल में, कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने वाले सत्तर मजदूरों की खोज-बीन के बाद हेड मिस्त्री रामचरण को साइट से लगभग छह किलो मीटर दूर मजदूर बस्ती ‘निर्माण नगर’ में छह हजार मासिक किराए पर एक ऐसा मकान मिल गया, जिसमें दो कमरे थे। पति द्वारा यह खुशखबरी पाने के बाद, रामचरण और सावित्री में कुछ ऐसी खिचड़ी पकी कि इधर नरेगा मज़दूरी का भुगतान हुआ, उसके तीसरे दिन रामकिशन मम्मी और बहिन को लेने सकरौली आ पहुंचा।

पटौर के अंदर दो-दो अटैचियां सजते देख, ससुर ने रामशरण द्वारा पौर में सावित्री को बुला भेजा, पूछने लगे, ‘क्यों बहू, क्या तुम भी अहमदाबाद जाने के लिए पंख तौलने लगी?’

हल्का-सा घूंघट निकालते हुए सावित्री ने उत्तर दिया, ‘दद्दा जी, मैं अहमदाबाद जा रही हूँ सेठ से अपना पुराना पैसा वसूलने के लिए। मैं वहां काम नहीं करूंगी, नरेगा में मुझे सकरौली में ही नियमित काम मिल रहा है।’

‘क्या तुम्हारे साथ सुगनी भी जाएगी?’ ससुर ने पूछा।

‘उसे अपने स्कूल से टी.सी. लेना है, दस्तख़त लगेंगे।’ –सावित्री ने जवाब दिया।

अगले दिन, सुबह सात बजे ही सकरौली से नवादा, फिर नवादा से अहमदाबाद के लिए सावित्री, रामकिशन और सुगनी की तिकड़ी चल पड़ी।

तीन महीने बाद, अहमदाबाद स्टेशन पर पत्नी सावित्री को साक्षात देख कर रामचरण भावुक हो गया, बोला, ‘कल-परसों तक हम चारों जन अपनी-अपनी सिम भी बदल लेंगे। अब उन स्वार्थी लोगों से हमें कोई संपर्क नहीं रखना!’

108, त्रिलोचन टावर, संगम सिनेमा के सामने, गुरुबक्श की तलैया, पो.ऑ. जीपीओ, भोपाल-462001 (म.प्र.)