‘सुनीतिया की मां अब यहां से उठकर चली जाए।सिंदूरदान के समय लड़की पर विधवा की मनहूस छाया नहीं पड़नी चाहिए’ – पंडित जी की कड़क आवाज गूंजी।सब लोग सकते में आ गए।आखिर सुनीता अपने मां की इकलौती बेटी थी।लेकिन मां चुपचाप आंचल से आंखों को पोछते हुए विवाह मंडप से जाने लगी।

तभी सुनीता का होने वाला पति उठ खड़ा हुआ और सुनीता की मां का हाथ पकड़कर बोला, ‘आप कहीं नहीं जाएंगी मां जी’।पंडित जी कुछ बोलते, इसके पहले वह पंडित जी की ओर मुड़ते हुए बोला, ‘पंडित जी, मां अगर विधवा हैं तो इनकी छाया मनहूस है।जब आप विधुर होकर शादी करवा सकते हैं तो यह मनहूस नहीं है।मां जी कहीं नहीं जाएंगी।’

पंडित जी के मुंह से एक शब्द नहीं निकला।

ग्राम +पोस्ट सदानंदपुर, थाना : बलिया, जिला : बेगूसराय, बिहार 851211 मो.9304664551