चर्चित कवि। ‘तमाम गुमी हुई चीज़ें’, ‘घर के भीतर घर’, ‘ऐसे दिन का इंतज़ार’ और ‘आशाघोष’ चार कविता संग्रह प्रकाशित। |
बंधन
हर नदी के हिस्से में
एक बार
बंधन आ ही जाता है
देखो ठीक बांध के बाद
गिरना नदी के पानी का
देखो
इन छोटे छोटे झरनों को
पानी के गुच्छे तन्मयता से
गिर रहे हैं निचली सतह पर
जैसे अनेक मजदूर काम पर
लगे हों
उनके ध्यान में इस समय
कोई मालिक नहीं
कोई दबाव नहीं
बस काम करने का मस्त
जुनून है केवल।
देव सो रहे हैं
दुर्गा निकल पड़ी है
जल चढ़ाने के लिए देवी की प्रतिमा पर
इसके बाद जाएगी
चार घरों में पोंछा लगाने के लिए
काली बना रही है
रोटियां सुबह जल्दी जल्दी
जाना है उसे बाहर
ठेकेदार आज सौ रुपये ज्यादा देगा
अगर डालेगी गिट्टी का मसाला शाम तक
कन्या नंगे पांव चलेगी
नौ दिन तक
जाएगी मां के साथ
बर्तन मांजने के लिए कालोनी में
फिर जाएगी सरकारी स्कूल में पढ़ने को
सभी देवियां काम पर लगी हैं
जिनके नाम का पूजन चल रहा है
उनकी शक्ति कामकाज में काम आ रही है
अभी सभी देव सो रहे हैं
उठते ही मांगेंगे एक कप चाय
और संभालेंगे राज के काज
देवियां तब भी
काम करेंगी
घरों में
थके हुए बदन से।
पिता
आसमान
देखता रहता है चिड़ियों को
मछलियों को
अपने भीतर अठखेलियां करते हुए देखकर
कंपित होता है तालाब का पानी
पत्ता
हिलने से बचता है
जब उसके बदन पर
ठहरी होती है ओस की बूंद
पहाड़ परवाह करते हैं
उन पर बढ़ते पौधों की
पिता उसी तरह
बेटियों के लिए
संवेदित रहते हैं
उनका हँसना, देखना
उनके लिए खुशी का सुहाना दृश्य होता है
उनकी उदासी
उन्हें भी उदास कर देती है
आसमान, तालाब, पत्ता
पहाड़ या बगीचा होते हैं
पिता
अपने बच्चों के लिए।
संपर्क : एल-40 गोदावरी ग्रींस, विदिशा-464001 मो.9425034312
सुंदर कविताएँ
धन्यवाद
अच्छी और सार्थक कविताएं
वाह!!बहुत बेहतरीन कविताएं
वाह वाह..अत्यंत सुन्दर रचनाएं 👌👌👌 अत्यंत सटीक, अर्थपूर्ण और असर छोड़ने वाला सृजन 👌👌👌 साधुवाद 👍👍👍
बहुत उम्दा कविताएँ 🙏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏