युवा कवि।इन दिनों बिट्स पिलानी के के बिड़ला गोवा कैंपस में शोधार्थी।

वैसे तो औरत भूला नहीं करती वे चीजें
जो होती हैं उसकी ज़ात से मंसूब
पर औरत होती है कुछ चीजों को भूलने की अभ्यस्त
यदि न भूल पाए तो भूलने का करती है स्वांग
जैसे मेरी मां एक क्षण कराह उठती है
अपने कमर की दर्द से बुरी तरह
और दूसरे ही क्षण सहज होकर
बुहारने लगती है घर का आंगन
लीपने लगती है मिट्टी का घर
यूं तो कई चीजें
जाने-अनजाने भूल सकती है औरत
लेकिन अपनी चेतना पर
बांध रखे हैं उसने असंख्य गिरह
वह भूलती नहीं अपना ‘औरत’ होना
भूलती नहीं रोटियों का हिसाब
महीने के अंत तक याद रखती है
हर एक पैसे का हिसाब
भूलती नहीं कि गुनाह होता है
बासी रोटियां नाहक फेंकना
भूलती नहीं हर रात खुद को परोसना
दबी आवाज में सुबकना…
औरत ने बांध रखे हैं शायद
अपनी देह और आत्मा पर भी असंख्य गिरह
इसलिए औरत भूल जाती है अकसर प्रताड़ना
बस भूलती नहीं प्रताड़ित होना।

संपर्क : कामर खजन घर क्रमांक-11, पेडेम, मापुसा, गोवा- 403507 मो.9637474704