शोधार्थी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी।

मौन कितना अच्छा है
दुनिया में सारी लड़ाइयां
सिर्फ बोलने से पैदा होती हैं
इसलिए देश के लिए
सबसे खतरनाक हो चुके हैं शब्द
एक के बाद एक जुमले
वादे और नफरत
जो देवी-देवता अब जा चुके हैं छोड़ कर
जिनका जीवन नंगे पांव
जंगलों में भटक कर कटा
जिन्होंने कभी नहीं चाहा था युद्ध
मगर युद्ध ने उनको चुना था
आज जब वे
अपने धाम में प्रसन्नचित्त हैं
तब हम उन्हीं के नाम पर बना रहे हैं
शब्दों को ज़हर
काश हम खामोशी से सुन सकें
पृथ्वी की करुण पुकार
वह नहीं चाहती कि कोई लहू सींचे उसे
वह आहत है आधुनिकता से
प्रकृति को अनसुना करने से
हिंसा से युद्ध से
हर चीज़ बदल रही है
बस नफरत है जो नहीं बदलती
प्रेम को मिथ्या कह दिया जाता है
मगर नफरत पूरी चेतना के साथ जीवित है
कोई नहीं कहता कि अब नफरत नहीं बची
हर कोई खो रहा है यकीन प्रेम पर
हम किस पौधे को पानी दे रहे हैं
क्या सींच रहे हैं
एक रोज़ हम मौन होकर सभी मज़हबों की रगों में जो दौड़ रहे लहू की आवाज सुनें
सभी धर्मों का एक ही सार है
सब खत्म हो जाएगा
और अंत में जो बचेगा वह मौन है।

संपर्क :४१बी, किलोकरी, महारानी बाग के निकट, नई दिल्ली ११००१४ , मो.८१३०७५०९२०