सुपरिचित कवयित्री।कविता संग्रह ओ रंगरेज’, ‘वर्जित इच्छाओं की सड़कतथा आंचलिक विवाह गीतों का संकलन मड़वा की छाँव मेंप्रकाशित।

दृश्य बिंब

मैंने चांद पर कविताएं लिखीं
और सौंप दिया
किसी की हथेली पर

मैंने ओस पर कविताएं लिखीं
और सौंप दिया
किसी फूल को

मैंने प्रेम पर कविताएं लिखीं
और सौंप दिया
तुम्हारी आंखों को

सौंपना उदात्त क्रिया हो सकती है
मगर संभालना कठिन।

आषाढ़ की दोपहरी में

आषाढ़ की किसी दोपहरी में
पकी कविताएं
उतनी ही पकी होती हैं
जितना तुम्हारा प्रेम

जितना कि किसी टहनी पर फल
जितनी पकी होती है नींद

कवि की नींद
अधपकी ही रह जाती है
कविताओं को सिंझाने में
अधखुली आंखों के झरोखों
दबे पांव तैरते हैं कुछ ख्वाब

जैसे उड़ी रहती है नींद
आंधी वाली रातों में
लालटेन की लौ का भक्क जलना-बुझना
दूर कहीं से उड़कर आए
सूखे पत्ते की तरह पीली रंगत लिए
कविताएं सींझती हैं।

ठहरो

बीतते समय ने कहा ठहरो!
कुछ रंग अभी बचे हैं
अभी हथेलियां रिक्त नहीं हुई हैं
ठीक उसी समय कुछ रंग गिरते हैं
मेरी हथेलियों पर

तमाम सभ्यताओं को लांघते हुए मैं
फिर से उनको समेट लेती हूँ खुद में
गिरते हुए रंग हथेलियों में गिरे तो
ज्यादा अच्छा होगा

रंग हथेली पर गिरे या पृथ्वी पर
उनकी चमक कहीं कम नहीं होती
दुनिया के तमाम रंगों के बीच
प्रेम का रंग जरूर बचा लेना चाहिए

बीतते समय को थाम लिया प्रेम ने।

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