चार दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता और निरंतर लेखन।शिखर में आगऔर सच कहने के लिएकविता संग्रह।

झूठ के पांव नहीं होते
बहुत पुरानी कहावत है यह
कहावतें हमेशा पुरानी ही होती हैं
बहुत ठोक-ठेठा कर बनती हैं वे
उन्हें तय करनी पड़ती है लंबी यात्रा

झूठ के पांव भले न हों
पंख तो होते हैं
पांव पर हमेशा भारी पड़ते हैं पंख

झूठ का बाजार बहुत गरम है इन दिनों
और बाजार के लिए बहुत मुफीद है यह कहावत
समाज को भी लगता है यह उतना ही मुफीद
राजनेताओं को भी

हर फसाद के पीछे होता है कोई न कोई झूठ
बिना कोई फसाद के आसान नहीं
किसी का सत्ता तक पहुंचना

राजा नहीं पूजता किसी के पांव
वह चूमता है बड़े प्यार से झूठ के पंख
दिक्कत यह है कि इन दिनों
लोग सबसे ज्यादा सच से डरते हैं
जिससे डरने की जरूरत नहीं
उसी से डरते हैं बेइंतहा

सच से डरना कबीर से डरना है
रैदास से डरना है
दुनिया में बढ़ गई है
कबीर और रैदास से डरने वालों की संख्या

सच के पास शंख होता है
पंख नहीं होते

शंख के पास होता है समुद्र का अनुभव
समुद्र के पास आकाश का
आकाश के पास सूरज, चांद, तारों का

सच का तो स्वभाव है उजागर होना
झूठ की तो परछाईं तक नहीं बनती
जिसकी परछाईं तक नहीं बनती
डरो, उससे डरो!

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