कहानी संग्रह-‘उस तरह की औरतें’।बच्चों के लिए भी लेखन।

माँ

बेटियों ने
मां को सिर्फ मां समझा
कभी लड़की क्यों नहीं
क्यों नहीं समझा
उसके भी सपने रहे होंगे
उसकी ही तरह
वह भी चाहती होगी
कच्ची कैरियों के स्वाद में
आकंठ डूबना
रंगीन गोलियों में सिक्त हो जाना
उन्मुक्त आसमान को छूना
रंगीन तितलियों की तरह
उसके भी होंगे रंगीन सपने
पर बेटियां हमेशा भरती रहीं
अपनी उम्मीद के रंगों से
हमारे सपनों को
मां सीढ़ी बनती रही
उनके अंतहीन आकाश के लिए
मां समझती रही
कि मां सिर्फ मां ही होती है
वह भूल जाती है
वह भी कभी लड़की थी
माँ बनने तक के सफर में
वह लड़की कब की मर चुकी थी
सपने कहीं दूर कराह रहे थे।

मन

मेरा मन किसी जंगल से कम नहीं
जंगल से गुजरने के बाद
जैसा महसूस होता है
आजकल कुछ वैसा ही मैं
न जाने क्यों महसूस करती हूँ
कहीं हरियाए मन का कोना
तो कहीं खर-पतवार का घना कोहरा
ढक देता है मन को
और छटपटाता है हर रोज
ऊंचे-ऊंचे दरख्तों के बीच झांकती
उम्मीद की रोशनी
जगाती है एक बार फिर
जीने की ललक
पर मैं तब भी वही हूँ जैसे
जिम्मेदारियों की भारी शिलाओं के बीच
दबे नवांंकुर
मानो दबी हों इच्छाएं और सपने
जो छटपटाते हैं पूरे होने के लिए
दीमक चाट जाते हैं
जैसे स्वस्थ पेड़ों को
चाट जाती हैं वैसे ही
जिम्मेदारियां मेरे सपनों को
आत्मदाह करते वृक्ष
जैसे जला रहे हों खुद अपने सपनों को
पैरों के नीचे चरमराते सूखे पत्ते
चरमराते हों जैसे आधे-अधूरे ख्वाब
कहीं उन्माद का कल-कल करता झरना
मानो चाहता हो हर दर्द को हरना
कहीं दूर है खुलता आकाश
मन भरता है गहरा उच्छ्वास
सचमुच मेरा मन
किसी जंगल से कम नहीं।

संपर्क : लाल बाग कॉलोनी, छोटी बसही, मिर्जापुर-२३१००१, उत्तर प्रदेश मो.९४१५४७९७९६