कविता, शार्ट फिल्म, पत्रकारिता, अनुवाद में रुचि। प्रकाशित कविता संग्रह- ‘सफेद लोग’।
शिक्षा अधिकारी। मराठी काव्य संगह ‘ॠतुपर्व’ महाराष्ट्र सरकार द्वारा पुरस्कृत।
1-मेरा सवेरा
मेरे लिए निषिद्ध
घोषित किए जा रहे हैं
फिर भी केंचुओं की सुगबुगाहट से
नहीं है मुझे भय
मैंने रास्ते पर
जिंदगी को खुली किताब बना दी है
हालांकि जकड़ रखा है
जिंदगी को डरपोक कौओं ने
मेढकों के सपनों को
पत्थर मारकर चटकाने
की इच्छा नहीं है मेरी
मेरा सवेरा
जकड़ा हुआ है जिस कैदखाने में
उस कैदखाने को ही
करना चाहता हूँ मैं ध्वस्त!
2-ठोकर
पहला
शब्दों से बनाता है शास्त्र
दूसरा
शास्त्रों से
तानता है शस्त्र
तीसरा
शास्त्र और शस्त्र से
मचाता है लूट
चौथा शास्त्र शस्त्र और लूट
इन तीनों को
लात-ठोकरें मारता है!
3-अगर अंगूठा होता
तुम्हारा अंगूठा होता तो
इतिहास कुछ और होता
लेकिन तुमने अंगूठा दे दिया
और इतिहास उनका होता चला गया
एकलव्य
उस दिन के बाद
उन्होंने तुम्हारी ओर
कभी मुड़कर नहीं देखा
अंगूठा होता तो
कम से कम सहम कर ही सही
देखते जरूर
क्षमा करना एकलव्य
नहीं फँसूंगा मैं अब
उनके मायावी शब्दों में
मैं अपना अंगूठा
काटूंगा नहीं कभी!
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