युवा गजलकार।‘वीथियों के बीच’ अद्यतन गजल–संग्रह।
सियासी साज़िशों से दोस्ती निभाने में
शहर बदल न कहीं जाए क़त्लखाने में
यहां पे क्रूरता हावी है सबकी करुणा पर
यहां पे व्यस्त हैं सब कहकहे लगाने में
दहक रही है बहुत नफ़रतों की आग यहां
झुलस रही हैं मेरी कोशिशें बुझाने में
मैं जानता हूँ ये आख़िर में डूब जाएंगी
मगर मैं जुट गया हूँ कश्तियां बनाने में
भुगत रहे हैं सज़ा अपनी ग़लतियों की हम
हमीं से भूल हुई उनको आजमाने में
मिला वह मौत से भी अपने दोस्तों की तरह
कोई तो बात थी उस सरफिरे दीवाने में
बहार आती थी पहले हज़ार रंग लिए
हसीन था ये शहर भी किसी जमाने में।
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