पूर्व प्रो़फेसर व निदेशक, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर।अब स्वतंत्र लेखन।ग्यारह उपन्यासों सहित लगभग 40 किताबें प्रकाशित। वर्तमान में एनजीओ राही सहयोग संस्थान का संचालन।

ज वह कुछ अलग-सा दिख रहा था।वह लंबा है, यह तो दिखता ही है।मगर उसके बाजू मछलियों से चिकने और गदराए हुए होंगे, यह कभी ध्यान नहीं गया।

जाता भी कैसे, रोज़ तो वह फॉर्मल शर्ट पहने हुए होता है।डार्क कलर टीशर्ट में उसे पहली बार ही देखा है ऑफिस में।आज वीकेंड का बिंदास आलम उसके बदन पर तारी है।आंखों में हल्का-सा सुरूर भी।यह तो होता ही है इस उम्र में।

कहीं छोटा तो नहीं है? सचमुच आज उन्नीस बरस के कॉलेज स्टूडेंट जैसा दिख रहा है।जींस भी हल्की नीली, टाइट, बिलकुल शोहदों-सी।रुई से सफेद हैवी लेस के जूते।

रोली मैम का दिल धक-धक करने लगा।

सच में आज पहली बार उन्होंने ध्यान दिया, चेहरे से भी बच्चा-सा लग रहा है।

क्या रोली मैम को एक बार फिर सोचना चाहिए?

अरे नहीं, ऑफिस में काम कर रहा है, कम से कम बाईस-तेईस साल का होगा।इक्कीस से कम तो लेते भी नहीं हैं जॉब में।

चेहरा किसी-किसी का इनोसेंट-सा होता है।फेस क्यूट है, इसलिए छितराए बाल कुछ ज्यादा सिल्की-से लग रहे हैं।

फिर इतना डर कर जिंदगी जी नहीं जा सकती।शरीर का सुख जोखिमों से  ही हासिल होता है।

रोली एक पैंतीस-चालीस वर्षीया स्मार्ट महिला थी, ऑफिस की सेकेंड मोस्ट सीनियर एक्जीक्यूटिव।नाभिदर्शना, चुस्त साड़ी में लिपटी ऐसी सुंदर महिला, जिसके साथ ‘परित्यक्ता’ शब्द बिलकुल नहीं जमता था।

जमता भी कैसे, रोली जैसी औरत को छोड़ने का साहस कोई पति भला कर कैसे सकता है।वह जरा-सा लिहाज कर गई, वरना रोली खुद छोड़ती उस अमानुष को।

रोली अब तक अपनी बेटी दशा का ख्याल करके जब्त कर गई।यही सोचती रही कि इस फूल-सी बच्ची के पिता को अपनी दुनिया से निकाल कर धुंध के काले जंगल में कैसे भेज दे? इसलिए उसकी अफलातूनी सहती थी।वरना ऐसे निकम्मे-नाकारा आदमी को कब का घर से निकाल बाहर करती।

तीन साल पहले वह खुद ही रोली को छोड़ कर चला गया।कहता था रोली का चाल-चलन ठीक नहीं है।

बारह साल की बिटिया बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रही थी।उसका भी खयाल नहीं किया।

अब बिटिया की मां भी रोली थी और पिता भी।

रोली की अभी उम्र ही क्या थी, चालीस साल होने में अभी देर थी।रोली खुद अब तक जींस, स्कर्ट और तमाम आधुनिक ड्रेसेस पहनती रही थी।बिटिया को ये परिधान पसंद नहीं आते थे।इसलिए पति के जाने के बाद अब बुझे मन से साड़ी लपेटती थी।

आज भी उसे देखने वाले तीस से ज्यादा की कहां मानते थे।

फोर व्हीलर साड़ी में भी चला लो, क्या फर्क पड़ता है।पर स्कूटी से निकलते समय रोली आज भी अपने वही पसंदीदा परिधान पहनती।बेटी की भी कहां तक माने, बेटी को भी आखिर आज की दुनिया के काबिल बनाना था।

रोली कहती, ढक-छिपा के निकलो तो सब छातियां देखते हैं, अंदाज लगाते हैं कि क्या साइज होगा, घूरते रहते हैं।खुद साइज दिखा दो तो नीची गर्दन किए निकल जाते हैं।

रोली का यह फ़लसफ़ा शायद रोली के पति और नन्हीं दशा के बाप को यह हौसला दे गया कि वह निकम्मा जाते-जाते रोली पर चाल-चलन की तोहमत मढ़ गया।

फ्रेंड्स के लाख समझाने पर भी रोली फिर से शादी के लिए तैयार नहीं हुई थी, मगर वह जमाने की चाल से पीछे भी नहीं थी।मजाक में कहती- हम मर्दों से कम हैं क्या, जब वह बड़ा अफसर बन कर अपनी सेक्रेटरी और टाइपिस्टों के सहारे उमर काट सकते हैं तो क्या हम नहीं काट सकते? आखिर हम भी अफसरी संभाल रहे हैं।

इसी बिंदास सोच की बिजली गिरी थी ऑफिस में नए-नए आए इस लड़के आर्यन पर।

रोली मैम ने दो एक बार जब भांप लिया कि लड़का केबिन में साइन कराने आते वक्त रोली मैम की अंगुलियों के बीच से वह अपनी हथेली हटा कर खींचता नहीं है।

मौका-बेमौका उससे बात करते समय रोली मैम उसके घर-परिवार की बातें करते-करते कुछ निजी बातें भी कर बैठतीं।

किसी खूबसूरत मॉडल-सा आर्यन उनकी बातों पर ऐसा लजाता कि रोली मैम आने वाले वीकेंड पर कुछ बड़ा कर गुजरने के मनसूबे बांधने लगतीं।

दो-चार ऐसी मुलाकातों ने रोली मैम को यकीन दिला दिया कि लड़का आज्ञाकारी है और महत्वाकांक्षी भी।

रोली मैम ने आर्यन को एक रात उनके साथ बिताने का न्यौता दे डाला।

फ्लैट लेकर अपने दोस्तों  के साथ शहर में रहते आर्यन को इसमें कोई अड़चन नहीं दिखाई दी।

तय हुआ कि शुक्र की शाम वो रोली मैम के साथ उनके घर चलेगा, वहीं रुक भी जाएगा।

आज शुक्रवार आते ही दिनभर उस कमसिन लड़के का जलवा देखकर रोली मैम लम्हा-लम्हा शाम का इंतजार करती रहीं।

वह आज कार भी लेकर आई थीं और शहर के सबसे दूर के मल्टीप्लेक्स के आखिरी शो के टिकिट लेकर भी।

रात को सवा बारह बजे मॉल से खाना खाकर लौटते समय गाड़ी भी आर्यन ने ही चलाई।

रोली मैम बगल में बैठी कनखियों से उसे गियर बदलते हुए देखती रहीं और एक्सीलेटर दबाते भी।उन्हें अजीब सी गुदगुदी होती रही।

क्या यह ऑफिस में उनका मातहत वही आर्यन है जो उनके आदेश की प्रतीक्षा में हाथ बांधे खड़ा रहता है।वह ऑफिस के अनुशासन से दूर शहर की चहल-पहल में बेहद प्यारा-सा लग रहा था।

अब रोली मैम को कौन समझाए कि पानी का यह लरजता झरना उनकी प्यासी अंजुरी को लक्ष्य करके ही उनके साथ चला आ रहा है।एक पूरी लंबी सांवली रात के लिए!

घर पहुंचते ही रोली मैम को लगा, जैसे उनके पैरों में छोटे-छोटे पहिए लग गए हैं, हाथों की डालियों में हरसिंगार के फूल खिल गए हैं और पीठ पर सुनहरे पंख उग गए हैं।यह रोजाना के ऑफिस से लौटने जैसा नहीं था।

पूरा घर जैसे गुरुत्वाकर्षण शक्ति खो बैठा हो।जैसे फर्श की एक टाइल से दूसरी टाइल तक पानी पर तैरता कोई बजरा खिसकता चला जा रहा हो, इधर से उधर।

रोली मैम ने एक भरपूर नजर आर्यन को देखा और अपना हाथ आगे बढ़ा कर वह डिजाइनर शॅर्ट्स निकालकर आर्यन को थमाया, जिसे वह कभी बिटिया दशा के लिए खरीद लाई थी और बिटिया ने उसे बड़ा बता कर पहना नहीं था।उसने यह भी कहा था- मॉम, ये तो जेंट्स है, किसी लड़के पर अच्छा लगेगा।

आर्यन जरा-सा झिझका।धीमी आवाज में बोला- ‘मैं जींस में ही सो जाऊंगा मैम।’

रोली मैम ने अनसुना करके मानो ऑफिस की तरह यहां भी आदेश सुना दिया- ‘बी कंफर्टेबल!’

आर्यन चुपचाप उसे हाथ में लेकर ड्राइंग रूम के अंधेरे में चला गया।

लेकिन जब आर्यन शॉर्ट्स पहन कर कमरे में वापस आया, तब तक रोली मैम शायद चेंज के लिए वाशरूम में जा चुकी थीं।वह दो पल खड़ा रहा फिर एक कुर्सी पर बैठ गया।

उसे अपनी अफसर के घर पर इन कपड़ों में रात को अकेले पहली बार बैठने में कुछ अजीब-सा महसूस हो रहा था।शॉर्ट्स दशा के लिए लाए गए थे, काफ़ी ब्राइट कलर्स के थे और बेहद नर्म और मुलायम।खुद आर्यन को यह वस्त्र अपनी जांघों पर से किसी रेशमी रुमाल की तरह फिसलता नजर आ रहा था।इसका मुलायम नाड़ा तो मानो था ही नहीं।इसे टटोलने के लिए आर्यन का हाथ बार-बार वहां जाता और कुछ खोजता।

थोड़ी ही देर में वाशरूम का दरवाजा खुला और उसमें से मादक परफ्यूम का एक झोंका निकल कर कमरे में फैल गया।

सुगंध के इस सैलाब के पीछे जब किसी शीशे की मीनार की तरह रोली मैम आईं तो आर्यन से एकटक उधर देखा न गया।

एकदम पारदर्शी झीना गुलाबी गाउन क्या था, मानो बदन पर पैबंद की तरह चंद शोख फूल ही चिपके हुए हों।

आर्यन को सपने में भी ये गुमान न था कि किसी राय बहादुर के हैट की तरह छितराए इस जूड़े के आगोश में घुटनों से नीचे तक लटके हुए लंबे बाल हैं।

एक बड़े से तकिए को सिरहाने रख कर रोली मैम ने आर्यन को बैडरूम में आराम से बैठ जाने को कहा और किचन में चली गईं।

कुछ देर बाद जब एक ट्रे में कांच के बड़े से गिलास में गर्म दूध लेकर रोली मैम आईं तो आर्यन कान से मोबाइल चिपकाए बेड के पास टहल रहा था।

रोली मैम के गिलास आगे बढ़ाते ही उसने उन्हें कुछ रुकने का इशारा किया और ड्राइंग रूम का पर्दा हटा कर उसमें दाखिल हो गया।उसने एक उंगुली के इशारे से रोली मैम से फोन सुन लेने की अनुमति मांगी और फोन पर बात करता हुआ दूसरे कमरे में टहलने लगा।

रोली मैम ने ट्रे एक स्टूल पर रखी और बेचैन-सी बैठ गईं।उनकी अकुलाहट पल-पल बढ़ रही थी, जैसे उन्हें सुनहरी रात की माला से दो चार मोती-मनके व्यर्थ जाया होने की कोफ्त सालने लगी हो।वह आता क्यों नहीं, रात कोई कयामत-सी लंबी तो होती नहीं!

ऑफिस होता तो उनके बुलाने पर आर्यन फोन को अधूरी बात के बीच पटककर कांपता-भागता चला आता।पर यह रोली मैम का घर था।इस नशीली रात के रुपहले साए में आर्यन उनका अधीनस्थ-मातहत नहीं, बल्कि उनकी रात को गुलज़ार कर देने आया राजकुमार था।वे सब्र से बैठी रहीं।

आर्यन की फोन पर बात चल रही थी, जिसकी फुसफुसाहट यहां सुनाई दे रही थी।वह पर्दे के पीछे ड्राइंग रूम में टहल कर बात कर रहा था।

दूध ठंडा हो रहा था।

रोली मैम ने एक भरपूर अंगड़ाई ली और उड़ती निगाह से दूध के गिलास को देखा।

उन्होंने दूध के गिलास की आड़ में अपनी अकुलाहट आर्यन तक पहुंचाने की कोशिश की, कुछ ज़ोर से बोलीं- ‘दूध ठंडा हो रहा है आर्यन! अब क्या मुझे फिर से किचन में जाना होगा इसे गर्म करने के लिए?’

आर्यन ने एक हाथ से मोबाइल थामे हुए दूसरे से ड्राइंग रूम का पर्दा हटाया और भीतर आकर गिलास उठा ले गया।वह वापस लौट गया, ड्राइंग रूम का हिलता पर्दा मानो रोली मैम को मुंह चिढ़ाता रहा।

रोली मैम माथे पर हाथ रख कर तकिए पर अधलेटी हो गईं।

आर्यन की आवाज वैसे ही बदस्तूर आती रही।बीच-बीच में वह गिलास उठा कर दूध का घूंट सिप कर लेता और फिर बातों में मशगूल हो जाता।

रात का डेढ़ बज रहा था।

रोली मैम के घर को इतनी रात गए तक बत्तियां जली देखने की आदत कहां रह गई थी।कभी- कभी जब बिटिया दशा आती, तब जरूर देर रात तक बातों के साथ जागरण होता।

रोली मैम ने बैडरूम की तेज लाइट बुझा कर हल्का-सा नाइट लैंप ऑन कर लिया।

इस नीली-रुपहली रोशनी में ड्राइंग रूम के पर्दे के पीछे टहलता आर्यन जब पर्दे के गैप के बीच से गुजरता तो रोली मैम को लगता, मानो साक्षात कामदेव उनके शयनकक्ष में दाखिल होने से पहले कायनात का जायजा ले रहा हो!

ओह, हल्की-सी झपकी के खुमार से छिटक कर रोली मैम की उनींदी आंखों ने दीवार पर टंगी घड़ी पर निगाह डाली तो वो सवा दो बजने का संकेत दे रही थी।

आर्यन की फुसफुसाहट जारी थी।

रोली मैम एक बार उठकर फिर से वाशरूम में गईं और जब लौटीं तो उनकी आंखों की चमक का रंग जरा-सा बदला हुआ था।मानो इंद्रधनुष की दुनिया में झूलती आंखों ने वॉयलेट, इंडिगो, ब्लू और ग्रीन रंग पार कर लिए हों और अब पीलेपन की ओर बढ़ रही हों।

वे पर्दा हटा कर ड्राइंग रूम में आईं और झल्लाहट भरे स्वर में बोलीं- टू हूम आर यू टॉकिंग मैन! इज़ ही ओर शी अ नाइट शिफ्ट वर्कर? व्हाट हैपेंड, इट्स थ्री ओ क्लॉक!

आर्यन उनके इस तेवर से सकपका गया।जल्दी से फोन को होल्ड पर लेकर उस पर हाथ रख कर बोला- ‘आप सो जाइए मैम! मैं यहां ड्राइंग रूम में सो जाऊंगा।’

रोली मैम हतप्रभ रह गईं।फिर एकाएक संभल कर बोलीं- ‘यहां कैसे सोओगे सोफे पर, वहां बैड है न खाली,…कम!’

– ‘आप सो जाइए, मुझे एक पिलो दे दीजिए यहीं।मैं सो जाऊंगा, नो प्रॉब्लम।’

– ‘अरे नहीं-नहीं… यहां कैसे सो पाओगे।’

– ‘तो मैं आ जाऊंगा भीतर, आप सो जाइए।’ आर्यन ने मानो अनुनय-सा करते हुए कहा।

– ‘बट ऐसे मुझे नींद नहीं आएगी…’

– ‘तो मैं चला जाता हूँ।’ आर्यन ने कुछ हैरानी से कहा।

अब रोली मैम हत्थे से ही उखड़ गईं।बोलीं- ‘एज़ यू विश! इतनी रात में तुम्हें कोई व्हीकल मिलेगा?’

आर्यन कुछ सकपकाया, फ़िर मायूस होकर बोला- ‘पैदल चला जाऊंगा।’

रोली मैम उसी तल्खी से बोलीं- ‘ओके, स्कूटी ले जाओ, परसों ले आना ऑफिस में!’

वे किसी शेरनी की भांति पलटकर भीतर स्कूटी की चाबी लेने गईं, और आर्यन झटपट शॉर्ट्स उतार कर जींस पहनने लगा।उसने अपने शूज़ पांवों में ऐसे ही बिना लेस बांधे डाल लिए और रोली मैम के हाथ से चाबी लेकर बाहर निकल गया।

उसने स्कूटी को इतनी तेजी से भगाया मानो किसी भारी बाइक पर सवार हो।रोली मैम कांप कर रह गईं।

उन्होंने धड़ाक से दरवाजा बंद किया और बत्ती गुल करके किसी कटे पेड़ के मानिंद ढह कर अपने बिस्तर पर आ गईं।

उनकी रुलाई फूट पड़ी।

वह घंटे भर तक ऐसी ही बदहवासी की हालत में रोती रहीं और अपने परिवार और बीते दिनों को याद करती रहीं।उन्हें दशा की याद भी बेसाख्ता आ रही थी और दशा के पापा की भी! नींद आंखों से कोसों दूर थी।

आर्यन पर गुस्सा आ रहा था और हैरत भी थी।वह आया क्यों था? क्या सचमुच वह बच्चा ही है, क्या अपने अफसर की आज्ञा मानकर डर से चला आया, क्या उनके अकेलेपन को बांटने की मासूम चाह लेकर ही आ गया था।

कहीं ऐसा तो नहीं कि दशा को याद करके, भविष्य में उससे मिल पाने का सपना देखता, उनसे अपनापन बढ़ाने के लिए चला आया हो? दशा भी तो अब पंद्रह पार कर रही थी।

ये सब सोचते-सोचते भोर के न जाने कौन से पहर में रोली मैम को नींद आई।

 

आर्यन ने रात वापस लौट कर दोस्तों से कुछ नहीं बताया, मगर भीतर से वह अपने को अपमानित महसूस कर रहा था।अगले दिन उसका मन किसी बात में नहीं लगा।

उसे पूरी आशंका थी कि अब उसकी नौकरी रहने वाली नहीं है।घर पर मां को क्या जवाब देगा!

सोमवार को उसका मन ऑफिस जाने को नहीं था।उसने नौकरी से निकाले जाने से पहले ही खुद त्यागपत्र दे देने का मन बना लिया।कैरियर के शुरू में इस तरह किसी ऑफिस से निकाले जाने का दाग वह नहीं लेना चाहता था।

मगर रोली मैम की स्कूटी लौटाने के लिए जाना जरूरी था।

सोमवार की सुबह भारी मन से वह तैयार हुआ।उसने अपना त्यागपत्र जेब में रख लिया।

सुबह नाश्ता भी नहीं किया, और ऑफिस के लिए निकल पड़ा।

ऑफिस में सब यथावत था।जैसे कुछ हुआ ही न हो।होना भी क्या था, झंझावात तो आर्यन की जिंदगी में आया था।किसी का उससे क्या लेना देना!

रोली मैम अपने केबिन में थीं।

थोड़ी देर बाद आर्यन के लिए उनका बुलावा आया तो वह भारी कदमों से केबिन की ओर चल पड़ा।

भीतर पहुंच कर उसने रोली मैम को नमस्कार किया।न वह उनकी ओर देख रहा था, और न मैम ही उसकी ओर देख रही थीं।

जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो।रोली मैम ने आर्यन से कहा- ‘यह फाइल तुमने भेजी थी न, एक बार नाइन नंबर वाला एस्टीमेट फिर से चैक करो बेटा!’ कह कर रोली मैम ने फाइल उसकी तरफ़ खिसका दी।

आर्यन चौंक पड़ा, इसलिए नहीं कि आज पहली बार उसके बनाए एस्टीमेट में गलती निकली है, बल्कि इसलिए कि आज पहली बार रोली मैम ने उसे ‘बेटा’ कहा।उसके भीतर कहीं दर्जनों बत्तियां जल गईं।उसने जेब से निकाल कर स्कूटी की चाबी रोली मैम को दी।

रोली मैम की अंगुलियों ने आर्यन से चाबी लेते हुए जब उसकी हथेली को छुआ तो आर्यन ने हथेली को हटाया नहीं, बल्कि मेज की दूसरी ओर जाकर धीरे से झुक कर मैम के पांव छू लिए।

रोली मैम हतप्रभ रह गईं।

कुछ रुक कर वे धीरे से बोलीं- ‘बेटा, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या?’

आर्यन शरमा कर बोला – ‘जी नहीं मैम, मैं रात को गांव में फोन पर ही अपनी छोटी बहन को मैथ्स पढ़ाता हूँ, पापा तो हैं नहीं न, और मम्मी पढ़ी-लिखी नहीं हैं।’

रोली मैम ने तेजी से अपनी रिवॉल्विंग चेयर पीछे घुमा ली, ताकि केबिन से जाता हुआ आर्यन कहीं उन्हें रोते हुए न देख ले!

उनकी आंखों की हताशा के पीले रंग ने क्रोध के नारंगी रंग को पारकर, पश्चाताप के लाल डोरे अब आंसुओं में डुबो दिए थे।

संपर्क : बी 301 मंगलम जाग्रति रेसीडेंसी, 447 कृपलानी मार्ग, आदर्श नगर, जयपुर-302004