भारत में कला बाजारधन और शक्ति द्वारा नियंत्रित है

‘द स्वैडल’ की अदिति मूर्ति ने कला जगत की एक प्रसिद्ध लेखिका और क्यूरेटर मीनाक्षी थिरुकोडे से भारत के कला जगत में पिछले वर्षों में उठे विरोध के संदर्भ में बातचीत की।

अनुवाद – अवधेश प्रसाद सिंह
वरिष्ठ लेखक, भाषाविद और अनुवादक।

प्रश्न भारत और विश्व स्तर पर कला के क्षेत्र में काम करते समय एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह उठता है कि कला एक बहुत ही अनौपचारिक संरचना है जो युवाओं को और सीमांत पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों को जोखिम में डाल सकती है।इन शक्ति संरचनाओं का निर्माण और संरक्षण कैसे किया जाता है?

मीनाक्षी थिरुकोडे– निश्चित रूप से कला की दुनिया एक अनौपचारिक क्षेत्र है।एक नीलामी घर जैसा, जहाँ एक कार्पोरेट संस्था काम करती होती है या एक संग्रहालय सांस्कृतिक संस्थान की तरह कार्य करता होता है।कला मेले लगाए जाते हैं, जो कार्पोरेट ही होते हैं।गैलरियाँ भी होती हैं जो एक छोटे टीम के साथ एक संस्थापक के इर्दगिर्द घूमती रहती हैं।जहाँ तक मेरा अनुभव है, भारत में कार्यस्थल में वरती जाने वाली नैतिकता, मानकों आदि के बारे में तथा क्या उचित है और क्या अनुचित, के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कोई आंतरिक समिति या कार्यशाला जैसी कोई चीज नहीं है।

मुझे याद है ‘सीन एंड हर्ड’ में सोथबी से संबंधित एक मामले को हाइलाइट किया गया था।सोथबी एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है और अलग तरह से काम करता है।लेकिन भारतीय संस्थान ज्यादातर समस्याग्रस्त हैं।याद करें, एंटी-सीएए विरोध के दौरान कला मेले के साथ क्या हुआ था? वस्तुतः पहली बार था जब लोगों को यह देखने को मिला कि संस्थाएं कैसे कार्य करती हैं।लेकिन हममें से कुछ लोग जो वास्तव में इन स्थानों में काम करते हैं, इन चीजों को लंबे समय से देखते आ रहे हैं।

भारत में कला की दुनिया कैसी है, कौन उसकी परवाह करता है? अधिकांशतः कला जगत पैसा तथा पावर पर आश्रित है।इसलिए जब ये घटनाएँ घटीं और विरोध हुए तो कुछ लोग धीरे-धीरे उससे जुड़ने लगे तथा संस्कृति तथा कला के क्षेत्र में राजनीति का स्वागत करने लगे।उन्हें यह एहसास हुआ कि कलाकार बनने के लिए आपको वास्तव में गैलरी में काम करने की जरूरत नहीं है।कला से जुड़ने के लिए बहुत सारे तरीके हैं।आप शिक्षक हो सकते हैं, अपना व्यवसाय करते हुए यह काम कर सकते हैं और अपनी जगह बना सकते हैं।

प्रश्न पिछले वर्षों में मेट ब्रेउर के सामने जयश्री अभिचंदानी के नारीवादी प्रदर्शन के मुद्दे के संदर्भ में आप क्या सोचती हैं, जब उनके ऊपर दुराचार करने वाले रघुबीर सिंह पर कूँची उठाई गई थी।यह विरोध का एक आश्चर्यजनक कार्य था, क्योंकि इसमें एक कलाकार द्वारा बनाई गई कला के साथ जुड़ने का एक नया दृष्टिकोण दिया गया था।भारतीय परिदृश्य में ऐसे विरोध को प्रकट करने की कितनी ताकत है?

मीनाक्षी थिरुकोडे यदि आप एक जगह मुहैया कराते हैं और विशेषकर हाशिए पर स्थित कलाकारों को अवसर प्रदान करते हैं, एक आवाज उठाते हैं तो निश्चित रूप से वह एक शक्तिशाली हथियार होगा।यह चीजों को उस तरह से करने से इनकार करने का एक तरीका है, जैसा आप थोपना चाहते हैं।असहमति और विरोध को दिखाने के लिए यह एक कम महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है, पर है।इससे विभिन्न कलाकार सामुदायिक अध्ययन तथा पढ़ने वाले समूहों को चलाने का उपक्रम कर सकते हैं।यह उन चीजों को चुनने पर निर्भर करता है जिसे लोग देखें।

भारत के संदर्भ में व्यक्तिगत तौर पर मैं दो उदाहरण दे सकती हूँ- एक, आर्यकृष्णन की ‘स्वीट मारिया मोनूमेंट’, जो एक शक्तिशाली कला परियोजना के रूप में मौजूद है, जहाँ अनोखा साहित्य संभार भी पढ़ने को उपलब्ध है, जो हत्या किए गए कार्यकर्ता और हत्यारे को सामने लाता है।दूसरा, ज्योत्सना सिद्धार्थ का कार्य है, जो एंटी-कास्ट लव प्रोजेक्ट के माध्यम से जाति के बाहर प्यार तथा कोर्टशिप के विचार को प्रदर्शित करने वाला एक अनोखा तथा शक्तिशाली कार्य है।

प्रश्न मैं युवा कलाकारों एवं प्रसिद्ध कलाकारों के बीच एक भारी अंतर देखती हूँ।युवा कलाकार विरोध की आवाज उठाते हैं, जबकि प्रसिद्ध कलाकार चुप्पी साधे रहते हैं।प्रसिद्ध कलाकार नागरिकों के विरोध के समर्थन में राजनीतिक या नैतिक आवाज क्यों नहीं उठाते?

मीनाक्षी थिरुकोडे– जैसा कि मैंने पहले कहा है, भारत में कला बाजार धन और शक्ति द्वारा नियंत्रित है।२००८ के बाजार-क्रैश के पहले भारतीय कला बाजार विशाल था, और काफी निवेश किए जाते थे, क्योंकि कला एक सराहनीय संपदा है।भारत में कलाकार उस समय बड़ी कीमत पर अपनी कलाकृतियों को बेच रहे थे।निश्चित रूप से यह जिनियस आर्टिस्ट की संस्कृति और बहुत सारे दुर्व्यवहारों को सामने लाता है, जो हमें भारत की कला संस्कृति में दिखाई पड़ते हैं।यदि आप एक छोटे से शहर या गांव से आ रहे हैं तो आपको केवल ब्लू चिप गैलरी और लिमोसिन में शराब और भोजन तक से संतोष करना पड़ेगा।सारा मामला शक्ति और पैसे का है और ये सभी लोग उसमें शामिल हैं।

२००८ के क्रैश के बाद बहुत से कलाकार स्मृतिपटल से गायब हो गए, क्योंकि उनके काम की कोई विशेष कीमत ही नहीं थी।आज पूरी नई पीढ़ी है, जो कला को एक नए राजनीतिक दृष्टिकोण से देख रही है।पुरानी पीढ़ी के तथाकथित प्रतिभाशाली कलाकार पुरानी महिमा को फिर से अर्जित करने की कोशिश में हाथ-पैर मार रहे हैं।इससे पुरानी और नई पीढ़ी के बीच एक खाई बन रही है।

प्रश्न आपने मुझे कहा था कि आपको एक विशेष रुख रखने के कारण काफी कुछ खोना पड़ा है।वे क्या चीजें थीं?

मीनाक्षी थिरुकोडे– मैं उन लोगों को नहीं समझ पाती जो गैलरी पद्धति में काम करना जारी रखते हैं, यह जानते हुए कि वे इसके बारे में क्या रुख रखते हैं।आप युवा कलाकारों के लिए मेंटरशिप कार्यक्रम बनाना चाहते हैं, लेकिन आप खुद गैलरी में काम कर रहे हैं।मेरा मतलब है कि यह आपकी पसंद है, आप कर सकते हैं, पर मुझे लगता है कि गैलरी स्वभावतः एक हिंसक स्थान है।मैं उन लोगों के साथ मेल नहीं खा सकती जो मेरी राजनीति के कारण वहाँ काम करते हैं।मैं यह नहीं कह रही हूं कि मैं उन सभी से बेहतर हूँ।बिलकुल नहीं।मैं सोचती हूँ कि मैंने अपने लिए एक खास मॉडल सेट किया है और लोगों को ऐसा करते देखना मेरे लिए मुश्किल है।जो लोग दुर्व्यवहार के बारे में बोलते हैं, उन्हें हमेशा समझौता करना पड़ता है।कोई बड़ा आदमी समझौता नहीं कर रहा है।मैं समझौता करना नहीं चाहती।अगर मैं एक संस्थान होती तो मैं उन सभी लोगों को काम पर रखना चाहती, जो विरोध प्रकट करते हैं।मैं उनलोगों के साथ काम करना चाहूँगी।

प्रश्न भारत के कला परिदृश्य में पिछले कुछ वर्षों में किए गए कार्य वस्तुतः विरोध के भविष्य के क्या संकेत देते हैं आप उनसे कहाँ तक आशान्वित हैं?

मीनाक्षी थिरुकोडे– हाँ, मैं आशान्वित हूँ।मुझे लगता है कि बहुत सारे युवा, बल्कि कला की दुनिया में संस्थानों में कार्य करने वाले युवक सुपर स्मार्ट हैं और विगत वर्षों में क्या कुछ घटा है उससे पूरी तरह से अवगत हैं और जानते हैं कि क्या करने की जरूरत है।और मैं सोचती हूँ और मुझे विश्वास भी है कि वे पहले की तुलना में एक भिन्न परिदृश्य की रचना करने जा रहे हैं।लोग, खासकर विद्यार्थी चर्चा करना चाहते हैं, वे कार्यशालाएँ आयोजित करना चाहते हैं और सीखी हुई बातों को उन संस्थानों तक या अपने जीवन में ले जाना चाहते हैं।इससे मेरे भीतर आशा उत्पन्न होती है कि एक ऐसी पीढ़ी है जो बने-बनाए ढर्रे पर नहीं चलना चाहती है।